पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०६ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता महाप्रसाद ले चुके हते । ता समे यह मोची उहां आइ निकस्यो। तहां याकों श्रीगुसांईजी को दरसन भयो । सो साक्षात् पूरन पुरुषोत्तम कौ दरसन भयो । तव यह अति आनंद पाइ श्री- गुसांईजी को साष्टांग दंडवत् करि दोऊ हाथ जोरि विनती करि कै कह्यो, जो-महाराज! आपु कृपा करि के मोकों अपनो सेवक करिये। तब श्रीगुसांईजी आप कृपा करि वा मोची कों नाम सुनाइ के सेवक किये । श्रीगुसांईजी वा मोची कों आज्ञा किये, जो-तू कहूं तें भगवत्स्वरूप ले आऊ। ताकी तू सेवा करि! तव वह मोची श्रीगुसांईजी सों कह्यो, जो - महाराज ! मेरे एक श्रीसालिग्रामजी को स्वरूप है। तव वह सालिग्रामजी के स्वरूप को मँगाय, ताको श्रीगुसांईजी पंचामृत सों स्नान कराइ, पाट वैठारि कै उनकी सेवा करिवे की आज्ञा किये । पाछे आप श्रीरनछोरजी के दरसन कों श्रीद्वारिकाजी पधारे। सो वा मोची की आसक्ति तो श्रीगुसांईजी में भई है। सो वह मोची साली- ग्रामजी में श्रीगुसांईजी की भावना करि भगवत्सेवा करिव लग्यो। सो तिलक छापा करे । सुंदर उज्वल वस्त्र पहिरे, धोती उपरेना। और कछु पहिरे नाहीं।ब्राह्मन की नाई रहन लाग्यो । तव वाकों गाम के ब्राह्मन सव मिलि कै दुःख देन लागे । कहे, जो-तू सूद्र होंई के ब्राह्मन की चालि क्यों चलत है ? तव याने कह्यो, जो- मैं हूं ब्राह्मन हों। तब ब्राह्मनन कही, जो - कहूं छाछ को दूध होत है ? तब यानें कही, जो - प्रभुन की कृपा होई तो छाछ कौ हू दूध होई। प्रभु सर्व करन समर्थ हैं। तब ब्राह्मनन कही, जो - हम देखें तो माने । तब वानें छाछ मँगाई । पाठें प्रभुन सों विनती कीनी, जो-महाराज ! श्रीगुसांईजी के संबंध करि,