पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२६

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एक खंडन ब्राह्मण १९ . बैठायो । सो वह पढयो बोहोत । तापाछे यह बरस तीस को भयो । तत्र याको पिता मरयो । तब यह घर में इकलो रहे । याको व्याह भयो नाहीं। सो जो कोऊ पांच मनुष्य मिलि गाम में कछु बार्ता-कीर्तन करें, तहां ये जाई । और सबन सों वाद-विवाद करे । सो मारे विद्या के मद सों यह काहू को बदे नाही। जो - कोऊ कछु कहे ताको यह ब्रामन खंडन करे । सो सब लोग याको खंडन वामन कहन लागे । सो सिंहनंद में वैष्णव बोहोत हुते । घार्ता प्रसंग-१ सो वह खंडन ब्राह्मन वैष्णव की वोहोत ही निंदा करतो। और वह वैष्णवन के पास ही रहतो। परि वैष्णव गोप्य वार्ता कीर्तन करते । सो एकांत में वेठि कै करते । सो एक समे श्रीगुसांईजी को जन्मदिवस आयो । तब उहां के सव वैष्णव जुरि के कीर्तन करत हते । सो यह खंडन ब्राह्मन कीर्तन सुनि के आयो । तव वैष्णव तो श्रीआचार्यजी महाप्रभुजी के तथा श्रीगुसांईजी के कीर्तन करत हते । तव वा खंडन ब्राह्मन ने कह्यो, जो - तुम हो गाऊं तैसें कीर्तन करो। तब वैष्णवन में कह्यो, जो - हम को तो तुम्हारे जैसे कीर्तन आवत नाहीं । तब वह खंडन ब्राह्मन बोल्यो, जो - मैं गाऊं। तुम मेरे संग गावो । और मोकों तो सव आवत है। तब वह खंडन ब्राह्मन और देवतान के गावन लाग्यो । और वैष्णव तो श्रीठाकुरजी के मिलि के गावत हते । तब ऐसे कीर्तन सुनि के एक वैष्णव को क्रोध आयो। तव वा वैष्णव ने खंडन ब्राह्मन मों कन्यो. जो - तुम को किनने बुलायो है ? और तुम विना बुलाए पराए घर क्यों आये हो ? और तू कहा समझे, कहा जाने ? ताते त यहां तें उठि जा । नाँतरु दोऊ हाथ पकरि के तोकों उठाय देउंगो। तब त बुरो मानेगो । तब वह खंडन ब्राह्मन