पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२८३

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२७४ दोमो बावन वणवन की वार्ता यह कीर्तन मुनि के श्रीगुसांईजी हृषिकेस ऊपर वोहोत ही प्रसन्न भए । पाछ सेन तांई पहोंचि के अनोसर कराय के सेन को दूध श्रीगुसांईजी आपने श्रीहस्त में ले आये । सो एक मलरा में थोरो सो प्रसादी दूध हृपिकेस को दियो । सो इपिकेस ने श्रीगुसांईजी की बैठक में जाँइ के लियो । सो लेत ही देहानुसंधान भूलि गये । सो बैठक ही में वठि रहे । वाही ठौर परिरहे । और हृदय भीतर स्वरूपानंद की अनुभव होन लाग्यो। तव वैष्णव सब डरपन लागे, जो - हृपिकेस को कहा भयो ? तव श्रीगुसांईजी कहे, जो - कछ चिंता मत करो । काल्हि आछी होइ जाइगो । तव सब वैष्णव विदा होइ के अपने डेरा गए । पाछे जव घरी दोई रात्रि पाठिली वाकी रही । तब हृपिकेस की मुर्छा वीती, सावधान भए । ता समे श्रीगुसांईजी उठे। जब दृपिकेस सों पूछे, जो - कहो, समाचार कहा है ? तव हृपिकेस ने विनती करी, जो- महाराज ! आप की कृपा हे तहां सदा जागत में सोवत में सव ठौर कल्यान है । जागत में आपको दरसन हे सोवत में स्वप्न में आपको दरसन । और मैं कहा कहों ? मेरो सामर्थ्य कहिवे की नाहीं । यह सुनि के श्रीगुसांईजी वोहोत प्रसन्न भए । श्रीमुख सों कहे, जो वैष्णव कों ऐसोइ चाहिए । या प्रकार तीन रात्रि श्रीजीद्वार श्रीगु- सांईजी और हृपिकेस रहे । पाछे श्रीगुसांईजी श्रीगोकुल वह अवलख घोडा पै चढि के पधारे । तव हृषिकेस संग ही श्री- गोकुल आए । तहां श्रीनवनीतप्रियजी के उत्थापन के दरसन हृषिकेस ने किये । पाछे श्रीगोकुल ही में रात्रि कों रहे । पाठे प्रातःकाल हृषिकेस श्रीगुसांईजी सों विनती करि कै कह्यो, जा-