पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२९

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२२ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता अपने घर जाऊ । तब वा खंडन ब्राह्मन ने कह्यो, जो-मोकों कहूँ ठौर नाहीं । सो अव तुम कृपा करि कै मोकों वैष्णव करो। तव उन वैष्णवन ने खंडन ब्राह्मन सों कह्यो, जो-श्रीगुसांईजी कृपा करें तव ही ये वात होई । सो यातें तुम्हारे मन में जो- ऐसी आई है तो तुम श्रीगोकुल जाउ । तुम्हारो मनोरथ पूरन होइगो । ता पानें वह खंडन ब्राह्मन वैष्णव सों विदा मांगि के चल्यो । सो केतेक दिन में श्रीगोकुल आय पहोंच्यो । तव वा खंडन ब्राह्मन ने श्रीगुसांईजी के दरसन किये । पाठे श्री- गुसांईजी सों विनती करी, और कह्यो, जो-महाराजाधिराज! मोकों नाम सुनाइए। जो-आप तो भक्तवत्सल हो। सो जीवन के अपराध साम्हें कहा देखत हो? तव वा खंडन ब्राह्मन के वचन सुनि कै वाके ऊपर कृपा करि कै नाम सुनायो । तव श्रीगुसांईजी आप खंडन ब्राह्मन को आज्ञा किये, जो-तुम एक उपवास करो । पाठें तुम को निवेदन करावेंगे। ता पानें एक उपवास करवाय कै वा खंडन ब्राह्मन को दूसरे दिन आत्म- निवेदन करवायो। पाछे वा खंडन ब्राह्मन ने यथासक्ति भेट करी । ता पानें वह खंडन ब्राह्मन थोरे से दिन श्रीगोकुल में रह्यो सो माग की सव रीति सीखी। और हू सब श्रीगुसांई- जी आप कृपा करि कै वा खंडन ब्राह्मन सों कहे । ता पानें श्रीगुसांईजी आप वा खंडन ब्राह्मन को ग्रन्थ पढ़ाए। सो सब मार्ग की रीति हृदयारूढ भई । सो ऐसें करत कितनेक दिन ताई वह श्रीगोकुल में रहि के श्रीनवनीतप्रियजी आदि सातों स्वरूपन के दरसन किये । पाछे एक दिन श्रीगुसांईजी आप प्रातःकाल उठि के देहकृत्य करि दंतधावन करि स्नान करि