पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३३३

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३३२ दोमो बावन चणचन की वार्ता कृपा तें मिली हैं । तातें सावधान व्ह स्नेह संयुक्त मेवा करियो। यह सुनि के स्त्री-पुरुष दोऊ जन चाचाजी को नमस्कार किये। और मन में बोहोत प्रसन्न भए । पाछे अत्यंत स्नेह संयुक्त भगवद्सेवा दोऊ जनें करते । भाव करि विप्रयोग दसा में अष्ट प्रहर रहते । या प्रकार चाचा हरिवंसजी महिना एक आगरे मे रहि के पाछे संतदासजी सो अत्यंत प्रीति संयुक्त विदा होई के पाछे उन दोऊ स्त्री-पुरुष ते विदा होंन आए । तब दोऊ ने चाचाजी की वोहोत स्तुति करी । जो- महाराज ! तुम कृपा करि के हम सारिखे महाघोर संसार मे परे हते तिन पर दया करी । सो कही जात नाहीं। या भांति विनती वोहोत करि यथासक्ति दोऊ स्त्री पुरुपने अपनी अपनी न्यारी न्यारी भेट दीनी । और चाचाजी सों कहे, जो-तुम हमकों अपने दाम जानि के वेगि ही फेरि दरसन दीजो । और श्रीगुसांईजी कों सव लालजीन कों, बहू-बेटीन कों हमारी दंडवत् कहियो। समस्त वैष्णवन सों भगवद् स्मरन कहियो । सो या प्रकार दोऊ स्त्री- पुरुष के वचन सुनि के चाचाजी मनमें बोहोत प्रसन्न भए । पाछे दोऊ जने चाचाजी को पहोंचावन चले । तव चाचाजी दोऊ जनेन को वोहोत समाधान करि घरकों पठाये। पाछे चाचा- जी श्रीगोकुल आए। श्रीगुसांईजी कों दंडवत् किय। पाछे उन ब्राह्मन-ब्राह्मनीन की दंडवत् करि भेट आगें धरी । तव श्री- गुसांईजी हरिवंसजी कों पूछे, जो-वे दोऊ वैष्णव आछे हैं ? तव चाचाजी दोऊनके सव समाचार कहे,। और वोहोत प्रसंसा करी। जो-इन दोऊ जनें को स्नेह वोहोत हैं। तव श्रीगुसांईजी कहे, सुद्ध पात्र में रस बेगि ठहरात हैं। उन माहात्म्य सहित