पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३३६

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एक साहुकार के बेटा की बहू, मूरत की ता पाछे वा डोकरी सों पूछयो, नित्य तुम कहां जात हो ? तव उन डोकरी ने कह्यो, जो-अमूके साह के घर जात हों। तिन के बेटा की वह को नित्य न्हवावत हों, चोटी करत हों। तव वह मोकों कछ अन्न देत है तासों मेरो निर्वाह होत है । तव तुरकने. वा साहुकार को नाम पूछ्यो, ता पाछे कयो, जो - वह गोरी सी इतनेक बरस की, ऐसो मुख है, ऐसो रूप है, ताकौ नाम कहा है ? तव वा डोकरी ने वतायो और कह्यो, जो-वा साह के बेटा की बहू है। ता पाछे वाने नाम कह्यो। सो सव वा तुरक ने लिखि लियो। ता पाउँ वा डोकरी सों नित्य वा स्त्रीके संबंधी के दो-चार नाम पूछे । तव डोकरी ने कह्यो,जो-हों तो जा- नति नाहीं। तव वह तुरक कहे, जो - आज पूछि आइयो। सो डोकरी नित्य पूछे, जो-अमूकी ! तेरे पिता कौ नाम कहा है, तेरे दादा को नाम कहा है ? सो वह स्त्री वतावें । सो वह डोकरी वा तुरक सों कहे सो वह तुरक लिखतो जाँई । ऐसें दोइ चारि नाम नित्य लिखें । ऐसें करत सात पुरखा सुसरारि के और सात पुरखा पिता की ओर के नाम लिखे । ता पाठे आसपास के गाम में तें ढूंढ़ि के एक वेस्या की छोरी वेसेही स- मान वय की वैसी ही रूप की देखि के वाकों कछक द्रव्य देनो करि कै वाकों लायो। ता पाछे वाकों वे नाम सब पढ़ाय मिखाय कै सावधान करिकै ता पाठे वा साह की बहू की साड़ी चोली, वाकी रीति प्रमान सिंगार खोटो खरो करि के ता पाछे वाके सरीर की चिबुक पै कारो तिल हो, सो वा डोकरी सों पूछि राख्यो हतो। सो वेसोई स्याई कौ तिल कर यो । हरत को ठाढ़ो करन्यो । ता पाठे सव वाकों सीखाई के कह्यो, जो - तुम ऐसे .