पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३६४

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एक ब्रजवासी, एक मोची-बनिया, एक ब्राह्मन पाठें ब्रजवासी तो दाम दे कै डेरा गयो। और वह मोची उठि कै घर में जॉई के देखे तो देवी कांपे हैं। तव इन मोची ने देवी सों कही, जो-तू कांपे क्यों है ? तेरो वचन तो नहीं चल्यो । तव देवी बोली, जो - ये तो वैष्णव ब्रजवासी श्रीगुसां- ईजी के सेवक हैं । औरन को सराप लगे । तेनें इन सों ऐसो कह्यो तातें मैं कांपत हूं। तव मोची ने कही, जो-तुम हू तें और बड़े हैं ? तव देवी वोली, जो- मोतें वड़े वैष्णव हैं। वैष्णव तें बड़े श्रीगुसांईजी। तव उन मोची ने कही, जो-मैं उनही की सरनि जाउंगो । पाछे वह मोची जहां श्रीगुसांईजी के डेरा हते तहां आयो। सो इन ब्रजवासी के पाँइन परि कै कही, जो-मोकों वैष्णव करो। तव वा ब्रजवासी ने श्री- गुसांईजी सों विनती करी, जो- महाराज ! मोची सरनि आवत है । सोयाकों सरनि लेऊगे ? तव श्रीगुसांईजी ने कही जो-मोची है ? जोड़ा वेचे हैं ? तव उन मोची ने कही, जो- महाराज ! वनिया हूं, उद्यम मोची कौ है । सो अव यह उद्यम न करूंगो । कपड़ान की दुकान करूंगो । तव श्रीगुसांईजी ने कृपा करि कै वाको नाम सुनायो । पाछे वा मोचो ने घर आय के जोड़ा सब वैचि डारे। रातोरात सव घर लीप्यो पोत्यो । सवारे स्त्री को श्रीगुसांईजी के पास नाम सुनवायो । ता दिन व्रत किये । पाठे देवी को तो खाड में पटकी। दूसरे दिना श्रीगुसांईजी ने स्त्री-पुरुपन कों ब्रह्मसंबंध करवायो। पाछे इन विनती करी, जो-महाराज ! अब कहा आज्ञा है ? तव श्री- गुसांईजी ने कही, जो - श्रीठाकुरजी की सेवा करो। पाछे आप तो एक ब्रजवासी ते आज्ञा किये, जो- याके घर जाँइ के