पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३६७

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३६६ दोनो बाान चाणवन की वार्ता करो। सव कुंड में रहाइ के सब कुंड की रज याके ऊपर लगावो । सो इन ब्राह्मन वैष्णव ने ब्रजयात्रा करी । सव कुंड की रज लगाई । सो आधी कोढ़ मिटयो । आधा रह्यो । तत्र फेरि श्रीगुसांईजी के पास आई विनती कीनी, जो - महाराज! आधो कोढ़ तो गयो है और आधा अब ह है। तब श्रीगुसांईजी ने कही, जो - द्वारिकाजी के मार्ग में हरिदास की बेटी है। उनके पास जाऊ । वे आछो करि देहंगे । तब वह वैष्णव हरि- दास की बेटी के पास आयो । तव उन आदर सो भली भांति सों उतारो दीनो । पार्छ पूछी, जो - कहां ते आये हो ? तव इन कही, जो - श्रीगुसांईजी ने तुम्हारे पास पठायो हूं। तब वह वोहोत प्रसन्नता सों कही, श्रीगुसांईजी ने बड़ी कृपा करी। पाठे राजभोग-आति करि के दरसन करवायो । पाछे वैष्णव तें कही, जो - उठो न्हाओ । महाप्रसाद लेउ । तब वह ब्राह्मन स्नान करी कै अपरस ही में आय वठ्यो । तव हरिदास की बेटी ने वा ब्राह्मन सों पूछया, जो - सखड़ी लेउगे के अन- सखड़ी लेउगे ? तव इन कही, जो - सखडी लेउंगो। तब इन सखड़ी महाप्रसाद धरयो । सो वा ब्राह्मन ने प्रसन्नता सों लियो। पाठे महाप्रसाद ले के वह ब्राह्मण वैठ्यो । तव हरिदास की बेटी ने पूछी, जो - तुम्हारो आवनो कैसें भयो ? तब उन ब्राह्मन वैष्णव ने सव समाचार कहे । तव उन हरिदास की वेटी ने अपने धनी मानिकचंदजी सों जाँइ के कही, जो - श्रीगुसांईजी ने पठाए हैं। ताते इनकों आछो करयो चाहिए। तव मानिक- चंद ने कही, जो आछो होइ सो करो । तव वह हरिदास की बेटी ने कही, जो - रुपैया दोइ हजार चाहिए । तव वैष्णव