पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३६९

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३६८ दोमो वारन वणरन की वार्ता ऐसें कृपापात्र भगवदीय है। ताने इन की वार्ता को पार नाहीं सो कहां तांई कहिए। वाता ।।१५४॥ 1 अघ श्रीगुमाईजी के मेयक क यनिगा, UT प्राग, दयी निगार Ar लिये, तिनकी पार्ता को भाय करत:- भावप्रकाग--ये बनिया माविक भक्त है । लीला में इन को नाम 'ग्या- वेसिनी' है। और समावेसिनी की तीन गयी और है । तिन के नाम 'मनमागनी'. 'प्रकासिनी', 'विलासिनी' । सो मन्मागनी या बनिया की मी मई । और प्रका- सिनी, विलासिनी दोऊ वामन-बामनी की प्रागटय जाननी । ये ग्यामिनी. 'सुगंधिनी' ते प्रगटी है । नाते उन के भावरूप हैं। या प्रमंग- सो एक समै श्रीगुसांईजी द्वारिकाजी श्रीरनछोरजी के दर- सन कों पधारे । सो मारग मे या बनिया की गाम आयो। सो तहां आप डरा किये । सो या बनिया को श्रीगुसांईजी के दर- सन भए । सो साक्षात् पूरन पुरुषोत्तम के दरसन भए। तब यह वनिया अपनी स्त्री सहित सरनि आयो । नाम-निवेदन पायो। पाछे श्रीगुसांईजी सों विनती करि श्रीठाकुरजी पधराय सेवा करन लाग्यो । पाछे वा गाम में और ह वैष्णव हते, सो उहां भगवन्मंडली नित्य होई । सो तहां ये दोऊ स्त्री-पुरुष भगवद्- वार्ता सुनिवे को जाइवे लगे । सो ऐसें करत या वनिया कों वैष्णव पर भाव बोहोत भयो । सो यह बनिया और उन की स्त्री उन के घर जो कोऊ वैष्णव आवतो तिन कों वे आग्रह करि महाप्रसाद लिवावते । ता पाजें जो बचे तो आप लेते, नाँतरु सेन में श्रीठाकुरजी आरोगे सो लेते । और जो कहूं अचा- नक वैष्णव आवते तो रसोई करि कै पुस्तक को भोग धरि के वैष्णवन को महाप्रसाद लिवावते । और जो रात्रि को सेन