पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३७२ दोमो चायन वाणवन की वार्ता किवार लेवे आयो। एक तो ले गया तोह देवी न बोली। आज और दूसरो लेवे आयो । अब ले जा ! और वा म्री ने कही, जो - अव पति के हाथ छगह ले ! देग्यो. देवी की मो प्रताप है। ऐसे सगरे दिन वा ब्राह्मन की भली भांति मां फजीती भई । सो वे तो मुंड दे के नीचो मायो करि के सुनियो करे । जो - जाके मन आवे सोई कहे । ऐमें करत रात्रि भई सव मनुष्य गए। पाछे वा ब्राह्मन ने देवी ते विनती करी, तब देवी ने कही, जो - पहिले तो त मेरे मंदिर के किवार कराय दे। और नित्य दोई भारा लकरी वा वैष्णव के घर पहोंचायो करि । नाहीं तो खडग ले के दोऊन के माथे काटोंगी। तब ब्राह्मन तो डरप्यो। तब हाथ छटि गए । सो घर गए । तब उन ब्राह्मन ने देवी के किवार कराय दिये । और दोड़ भारा लकरी नित्य उन वनिया चैष्णव के घर पहोंचावे । ऐसें करत केतेक दिन भए । तव उन वैष्णव ने कह्यो, जो - अब तो सग- रो घर लकरीन ते भरयो है, राखिवे को ठौर नाहीं। तातें अब तुम मति ल्यावो । तव उह ब्राह्मन ने हाथ जोरि कै कही, जो हम लकरी न लावे तो देवी मारि डारेगी। तब उन वैष्णव ने कही, जो-तुमने देखा देखी करी। तातें इतनो दुःख पाए । और देखो श्रीगुसांईजी को ऐसो प्रताप है। तव उन ब्राह्मन ने कही, जो-कृपा करि कै मोहू को श्रीगुसांईजी कौ सेवक करि वैष्णव करो। तव उन वैष्णवने कही, जो - तुम दोऊ मिलि के श्रीगोकुल जाँइ कै श्रीगुसांईजी के पास नाम-समर्पन पाय आवो। और श्रीठाकुरजी की सेवा पधराय ल्यावो । तव उन ब्राह्मन ने कही,जो-देवी! हमारो पिंड नहीं छोरे हैं। तब इन वैष्णव कही, 19