पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३९०

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एक भगवदीय, एक तासी, गुजगत के के दरसन कराये । पाछे श्रीठाकुरजी को अनोसर करि के पाछे इन वैष्णवन को न्हवाय के महाप्रसाद सब वैष्णवन कों लिवायो। पाठे लौकिक कार्य करन लागे। तब उन ताहसी ने मन में विचारी, जो - मैं इन भगवदीय की परीक्षा लीनी । सो लौकिक कार्य में तो यह भगवदीय कुसल है। परंतु अव अलौकिक में परीक्षा लेनी । पाछे जव उत्थापन को समय भयो तव दोऊ स्त्री-पुरुष न्हाय कै सेन पर्यंत सेवा तें पहोंचि के फेरि इन वैष्णवन कों व्यारु करवाय के विछौना करन लागे । तव इन ताहसी ने कही, जो - हम तो श्रीठाकुरजी की देहरी में सिरहानो धरि कै सोवेंगे। तब उन भगवदीय ने उहांई विछोना करि दियो । पाछे उन वैष्णवन को सुवाय के पाछे आप लौ- किक कार्य करन लागे। ता पाछे सवेरे वेगि न्हाय के वह स्त्री जन तो रसोई में गई । और यह वैष्णव आप न्हाय कै अप- रस पहरि कै आय के देखे तो यह ताहसी वेष्णव सोवे हैं। तव इन मन में विचार कियो, जो - अब मैं इन ताहसी कों नींद में तें कैसें जगाउं ? और ये जागे तव श्रीठाकुरजी के किवाड़ खुले । देहरी ऊपर माथो है । सो मंदिर में कैसें जाँय ? ऐसें विचार कर के पाछे तिलक-मुद्रा करन लागे । पाछे जप करन लागे। और इन ताहसी के मन में इन की परीक्षा लेनी, तातें जागें तो हैं परि वोले नाहीं। ऐसें करत रसोई होइ चुकी और जप हू करि चुके । पाछे ठाढ़े रहे । परंतु उन वैष्णव कों जगावे नाहीं। ऐसे विचार. जो-यह वैष्णव नींद में सोवत है। सो मैं इनकों कैसे जगाऊं? ऐसे विचार के ठाढ़े होंय रहे। मो ठाढ़े ठाढ़े पहर एक भयो । तब इन ताहमी ने मन में विचारी.