पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/४०

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एक साहकार मथुग का ३१ अब श्रीगुमाईजी को मेघक एक मारफार, मथुराजो में रहनो, मिनकी याताको भाय कहन है- भावप्रकाग-ये राजस भक्त हैं । लील में इन को नाम 'मनोरूपा' है। सो मनोरूपा श्रीयमुनाजी के यूथ की है। ये 'छविसिंघितें प्रगटी है, नाने उनके भावरूप हैं। ये मथुराजी में एक द्रव्यपात्र साहूकार के घर जन्म्यो । सो उह माहकार सराफी की दुकान ह करतो । सो वाको वेटा बरस बारह कौ भयो। तब बाकी व्याह कियो । पार्छ केतेक दिन में वह साहकार मरयो। तब वह दुकान पै जान लाग्यो । परि यह देवी जीव हतो । ताते याके मन में यह चिंता रहे, जो श्रीठाकुरजी की प्राप्ति कैसे होंई ? सो जो कोऊ वाकी दुकान पै आवतो तासों यह पूछतो। सो एक दिन एक मथुग्यिा चोवे या साहूकार की दुकान पै आयो। सो वह पंडित हुतो । तिन सों यह साहकार पूछयो, जो - तुम बड़े पंडित हो । ताने हम को श्रोठाकुरजी कौन प्रकार मिले सो उपाय कृपा करि कहिये ? हम कों श्रीठाकुरजी के मिलिवे की बोहोत उत्कंठा रहत है। तब वह मथुरिया चोव ने कयो, जो - सुनि ! श्रीठाकुरजी तो घर छोरि एकांत बन म जाई भजन करे तब मिलन हैं। ता उपरांत जो - तोको कह पूछनो होई तो त, श्रीगोकुल जा। तहां श्रीविठ्ठलनाथजी गुसांई रहत हैं। तिनसों पूछि । वे बड़े पडित हैं । बोहोत लोग उनके सेवक है । यह कहि मथुरिया चोवे तो अपने घर गयो। पाछे दूसरे दिन वह माहूकार श्रीगोकुल आयो । सो ता समै श्रीगुसांईजी आप ठकुरानी घाट पर संध्यावंदन करत हुते । सो तहां यह साहकार को श्रीगुसांईजी के दरसन भए । सो महा अलौकिक तेजपुंज एसें दरसन भए । सो वह एक घरी लो उहां टाड़ी रह्यो । पार्छ श्रीगुसांईजी या स हुकार की ओर देखे । तव वा साहकार मों आप कृपा करि कहे, जो-तू कहा पूछिये आयो है ? सो मोसों कहि। तब तो यह साहूकार विस्मित होंड रह्यो । कयो, जो - देखो ! विनु कहे इन मेरे हदय की जानी । नात निश्चय यह ईश्वर हैं। ऐसे अपने मन में निर कियो। पाठे यह साहकार दो हाथ जोरि विनती कियो. जो - महागज! आप ईम्बर हो. मेरे मन की जान । तातें अब मोकों कृपा करि के सरनि लीजिये । हों आप के मानि आयो हूं । तब श्रीगुसांईजी कह. जो - तृ पहिले या बात को पूछि । पाई नोकों सरनि लेग । नर या साहकार ने विनती करी. जो-महागज : मेरे मन में योडीन