पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/४०५

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दरमन करि के दामी चापन वणन की या नाथजी के उत्थापन किये । और उह क्षत्री वष्णव तो पावन चलतो । सो पछि रहि गयो । मो मेन के दरमन हांड चुके पाछे आयो । मो देखे तो मेन होड चुकी है। तब उह क्षत्री वैष्णव अपने मन मे बोहोत ही पचाताप करन लाग्यो, जो आज मैं प्रथम ही आयो । मो मोको दरमन नहीं भा । और वह क्षत्री वैष्णव के मन में एमी हती. जो महाप्रसाद लेनो। सो दरमन तो भा नाहीं। तब उह अत्री वष्णव श्रीनाथजी के मंदिर वाहिर ड्योढ़ी पे बैट या । मो दरसन न भये तातं वाके मन में अत्यंत ताप भयो । मा नाप श्रीनाथजी सों सह्यो न गयो । तव आए श्रीठाकुरजी म यरात्रि के समय झारी वंटा ले के मंदिर के वाहिर वा क्षत्री वैष्णव के पास पधारे। सो वा तं श्रीगोवर्द्धननाथजी आपु ने कही, जो-वष्णव दरमन करि ले । तव वा क्षत्री वैष्णव ने श्रीगोवर्द्धननाथजी आपु के दरसन किये । पाठे श्रीगोवर्द्धननाथजी आप झारी बंटा वा वैष्णव कों सोंपे। और आजा किये, जो-यामें तं महाप्रसाद लीजियो। सो ऐसें कहि के आप मंदिर में पधारे। और वा वैष्णव ने महा- प्रसाद लीना । और झारी मे ते जल पियो । सो एक तो पंथ कियो, दूसरे भूखो, सो प्रसाद लेतही वा भत्री वैष्णव को आलस आयो । सो उह झारी-वंटा उहांही धरि के एक ओर जांइ के पर्वत पै सोय रह्यो । तव प्रातःकाल संखनाद भए तव उठयो । और श्रीगोवर्द्धननाथजी वाहिर पधारे पाछे भीतर पधारे। सो मंदिर के किवार खुले परे हैं। सो जव श्रीगुसांईजी न्हाय के ऊपर पधारे तव देखे तो मंदिर के किवाड़ खुले परे हैं। तब श्रीगुसांईजी ने सेवकन सों कही, जो-वस्तू भाव सम्हारो। पाठे