पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/४२१

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४२० दोपी बावन गावन की वार्ता परंतु अनजाने नम्व में घृत रहि गयो हतो। पाठे उह महा- प्रसाद लेवे कों वटयो। तब रमोडया ने नाती कही पगेनी । सो उह नखन को घृत ताती कड़ी में आयो। मो श्रीनाथजी को अनप्रसादी द्रव्य पेट में गयो । तानं या अपगव ने यह बान भयो । सो श्रीठाकुरजी की द्रव्य सोई है। भावप्रकाश-या वार्ता में यह जताण, जी - टार की अनपमादी गान मामग्री द्रव्याटिक मां वैष्णर को मथा मावधान म्हनी । काहेत. जी - अनजान है वह काहू भांति मों उदर में जाट नो यह गति होड । गो बात रूपा पीरिया के मिप करि मव वैष्णवन को श्रीगुसांईजी आप जता", नानक रूपा पोरिया जैगन की ऐसी गति मर्वथा न होंड । परि म्यकीय मिक्षार्थ यह प्रमुन को कौतुक । पाछे केतक दिन में रूपा पोरिया की मृत्यु आई । नव उह मनुष्य-देह छोरि के स्थान के उढर मे आयो। पाठे जन्म भयो। परिवाने भगवत्सेवा वाहोत की हती। मो याकों पूर्व- जन्म को ज्ञान रह्यो हतो । तातें अपनी जाति की देह संबंधी माता-पिता आदि सब को अभाव करि के उन की संग छोडि कै पर्वत के नीचे उतरि के, श्रीनाथजी की ध्वजा के सन्मुग्य यह स्वान वैठयो हतो । तात मेरे चरन-स्पर्म के निमित्त इतनी यत्न कियो । और इतनो मार खायो । तब वे वैष्णव इतना अपराध को वचन सुनि के सिक्षा मानत भए । और कहन लागे जो - भाई ! आपुन ऐसे वैष्णव को ऐसो मारयो ? अनजाने भई सो बुरी भई । परि आपुन तो विचार कियो हतो, जो- यह श्रीगुसांईजी कों छवेगो । ता पाछे श्रीगुसांईजी आपुन यह वात उन वैष्णवन के मन की जानी। तब श्रीगुसांईजी ने उन वैष्णवन सों कह्यो, जो - तुम अपने मन में चिंता-कलेस मति करो। यह तो जो कछ भयो है सो तो ईच्छा ते भयो है । सो