पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/५४

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२५ तीन तूबाबालो वैष्णव ब्राह्मण तव यह ब्राह्मन ने कह्यो. जो-मा पैं महादेव सानुभाव है । तातें मैं महादेवजी सों कहि कै तुम को पुत्र दिवाऊंगो। तब वा राजा ने वा ब्राह्मन को पांच हजार रुपैया दिये । सो ब्राह्मनने रुपैया ले के वरूनी कराई । महादेव के नाम की जज्ञ कियो । वोहोत जतन किये । सो रुपैया सव व्यर्थ गए। कछु भयो नाहीं। तब तो वह ब्राह्मन महादेवजी पे मरन लाग्यो । तव महादेवजी प्रगट होई वा ब्राह्मन मों कहे, जो-तू हकनाक क्यों मरत है ? वाके भाग्य में पुत्र नाहीं। तब इन कह्यो जो-एक लरिका राजा को अवस्य दियो चाहिए। और महादेवजी सों कह्यो, जो-मैं तुम्हारी बोहोत दिन सों सेवा करी हैं । तातें तुम या राजा को एक लरिका तो देहु । तो मेरो वचन सत्य होंई। नाहीं तो हों तुम्हारे ऊपर मरोंगो। तव महादेव ने वा ब्राह्मन सों कही, जो-तृ वेठ्यो रहे, मैं श्रीटाकुरजी सों पूछि आउं । यह कहिकै महादेव श्रीठाकुरजी सों जाँड विनती करे. जो-महाराज ! मैं एक ब्राह्मन की वर दियो है। सो वह कहत है, जो-राजा को एक पुत्र होई। जो- ऐसो न देउगे तो वह ब्राह्मन मेरे ऊपर मरत है । यह मुनि के श्रीटाकुरजी हँसि के रहे, जो-महादेवजी ! वह राजा के भाग्य में पुत्र सपने ह में नाहीं । तातें मैं कहां तें देउ ? ताते तुम जाँइ वा बाह्मन सों कहि देहु. जो- राजा के भाग्य में तो पुत्र नाहीं है । तोकों मरनो होइ तो मरि । तव महादेवजी आइ कै वह ब्राह्मन मों कहे. जो-मैं तेरे लिये श्रीठाकुरजी पे गयो हतो सो मैं श्रीठाकुरजी सों को हतो। सो श्रीठाकुरजी ने अपने श्रीमुख तें कह्यो. जो- राजा के भाग्य में पुत्र