पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/७८

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रेंडा उदंबर ब्राह्मण रात्रि को यहांई सोय रहों । काल्हि अपने गाम जाउंगो। सो उष्णकाल के दिन हते । सो वा तलाव पे रेडा उतरयो । सो रेंडा की ज्ञाति को एक ब्राह्मन वा गाममें रहत हतो। सो वाके एक बेटी हती । सो एक दिन वा लरिकिनी को खेलन में स्याँप ने काटी। सो वाके माता-पिता वोहोत दुःख करन लागे । गारुड़ी सों झराए । तव वा ब्राह्मन ने कही, जो- अव लरिकिनी आछी होइ तो काह निष्कंचन गरीव ब्राह्मन कों विवाह करि देउंगो ! तव वा लरिकिनी की माताने कही, जो - मेरे ह मनमें ऐसी है । पाछ वह आछी भई । सो वह ब्राह्मन प्रातःकाल नित्य गाम तें निकरि के वा तलाव ऊपर आवे । सो जो कोई नयो मनुष्य तलाव ऊपर देखे तासों पूछे । जो तुम कौन ज्ञाति हो ? कहां रहत हो ? सो प्रातः काल रेडा देहकृत्य करि दंतधावन करि स्नान करत हतो । तव वा ब्राह्मन नें गाममें तें आय रेडा सों पूछ्यो जो- तुम कौन ज्ञाति हो ? कहा तुम्हारा नाम है ? कौन गाम में रहत हो ? तब रेंडा ने कही. जो- यहां सौ चारि कोस पे कपडवनज गाम है। तहां मैं रहत हैं । उदवर ब्राह्मन फलाने को चेटा हूं और रेंडा मेरो नाम है । और श्री- गोकुल त मैं आयो हूँ। अब मैं अपने घर को जात हो । तव यह सुनि के ब्राह्मन ने प्रसन्न होइ के कह्यो. जो-यह तो मेरी ज्ञाति को ब्राह्मन है । तब वा रेडा सों पृथ्यो जो तुम्हारो व्याह कहाँ भयो है ? तब इन ने नाही कीनी । तब तो ब्राह्मन ने बोहोत विनती कीनी और कन्यो, जो - मेरे एक लरिकिनी है. सो मैं तुम को देत हूँ। और व्याह करि