पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/११६

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पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १०१ अन्य कई ऐसे ही विघ्न आ पड़े कि मैं न जा सका। यन्त्रालय के कुछ लोग मुझसे गुप्त रूप से नाराज थे उन्होंने यह मौका पाकर मुझे जवाब दे दिया। अस्तु, मुझे नौकरी की कुछ ऐसी परवा भी नहीं। हां, विद्यालय की पुस्तकों के बारे में क्या रहा? . भवदीय- पद्मसिंह (१८) ओम् नायकनगला पो० चान्दपुर जिला-बिजनौर ३०-१-०६ श्रीमत्सु प्रणामाः १६-१ का कृपाकार्ड और २२-१ का पत्र मिले। आनन्दित किया। सरस्वती भी आज मिली। 'सरगौ नरक ठेकाना नाहिं' में कल्लू के रूप में शायद गुप्ता साहब अपना कच्चाचिट्ठा सुना रहे हैं। क्योंकि 'झंझराखेरा बनियई' 'दीनदयाल' आदि शब्द उनकी तरफ ही इशारा कर रहे हैं। ____मसखरेपन का जवाब तो उन्हें अच्छा मिल गया। 'सौ सुनार की और एक लुहार की' इसी को कहते हैं। यह कविता भी शायद खुद बदौलत की ही है। 'ऊषा स्वप्न' भी अच्छा जमाने में फैजी के बयान में जो यह लिखा है कि-मलकुश्शोरा कालिदास का ड्रामा 'नलदमन' फैजी के सिवा कौन तर्जुमा कर सकता था-इस पर आपको नोट देना चाहिए था, महाकवि कालिदास का नलदमन नामक कोई ड्रामा ही नहीं, फिर तर्जुमा किसका किया। रामचन्द्र के वनगमन मार्ग का जो नकशा दिया गया है उसमें भी पंचनह का नाम पांचाल ही लिखा है। पर यह ठीक मालूम नहीं देता। जब पंजाब से पांचा- लपण्डिता निकली थी तो उसके नाम पर सनातन गजट आदि अखबारों ने बड़ा आक्षेप किया था, और भी कई संस्कृत के पण्डितों से सुना है कि पांचाल फर्रुखाबाद और कन्नौज के पास था। उसकी राजधानी कम्पिल्ल के खंडहर अब तक फर्रुखाबाद के समीप हैं। उसे शायद अब कपिता कहते हैं। आप इस विषय पर तहकीकात करके कुछ अवश्य लिखिए।