पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सागा पं० पासिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १०५ है। न मालूम कम्पोजीटर लोग इस रोशनाई से लिखे लेख का कम्पोज कैसे करते होंगे। "शबाबे लखनऊ मिलता कहाँ से है ? ईश्वर के अनुग्रह से अब नीरोग हूँ। कृपाभिलाषी पद्मसिंह . (२१) ओम् नायकनगला श्रीमत्सु सादरं प्रणामाः श्रीमान् का २७-४ का कृपापत्र मिला। अनुगृहीत किया। कलकत्ते वाले मिश्र जी की सम्मति पर निवेदन है कि-चण्ड, कण्टक, आदि शब्दों का उच्चारण माइंड, सेंट आदि शब्दों के उच्चारण से जरूर भिन्न होना चाहिए, क्योंकि चण्ड की ध्वनि में एन 'नकार' का शुद्ध उच्चारण नहीं होता किन्तु 'न' और 'ण' दोनों के बीचो बीच का सा, और माइंड में विशुद्ध 'नकार' की ध्वनि निकलती है, क्या यथार्थ में ही 'आकृष्ट' तथा 'शिष्ट' के उच्चारण से 'मस्ट' या 'फर्स्ट' का उच्चारण मिलता है ? यहां अंग्रेजी का 'एस' संस्कृत के 'षकार' का सा उच्चरित होता है ? यदि यही बात है तो हम फर्स्ट को फारसी हरूफ में फर्स्ट लिख' सकते हैं? परन्तु कोई ऐसा नहीं करता, जिन शब्दों में 'एस' का उच्चारण ठीक दन्त्यसकार का सा नहीं है वहां तालव्य 'श' या मूर्धन्य 'ष' का प्रयोग कर सकते है, परन्तु जहां 'एस' का उच्चारण बिलकुल ही 'स' की तरह का है वहां भी मूर्धन्य 'ष' के प्रयोग के लिए झूठमूठ' आग्रह करना हमारी राय में ठीक नहीं। जहां वस्तुतः स्वरहीन षकार और णकार हो वहां भले ही टवर्ग के साथ मिश्रित होकर उच्चारित हो, पर जहां नकार और अनुस्वार है वहां णकार बनाने का झूठ- मूठ आग्रह क्यों किया जाय? और फिर 'गवर्नमेन्ट' आदि शब्दों में रकार के प्रयोग में नकार को णकार होकर 'गनर्णमेण्ट' भी होना चाहिए : पर ऐसा उच्चारण कोई नहीं करता। यदि संस्कृत वर्णमाला में उस आकृति के अक्षर नहीं है तो अब बन सकते हैं, बन भी गये हैं। जब फारसी शब्दों के अनुकरण में 'ज' लिखा जाने