पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१२१

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र लगा तो यह कौन बड़ी बात है ? मिश्र जी को चाहिए कि २७-४ के भारत मित्र में, तीसरे पृष्ठ के ७वें कालम में 'कलकत्ता' के नीचे 'असिस्टण्ट' शब्द पढ़ें, आशा है, "नृप' की तरह वहां स ऋ का धोका न होगा। उसी पृष्ठ के ८वें कालम में विशुद्ध चीनी' के नोटिस में पोस्ट यशोहर' पढ़ देखें, इसी प्रकार उसमें और भी कई शब्द 'मिलेंगे, जिनमें 'स' और 'ट' मिले हुए हैं। आगे जैसी मिश्र जी की राय हो। मिश्रित अक्षरों के विषय में उन्हीं की सम्मति को गौरव देना युक्त भी है। भाषा की अनस्थिरता के विषय में 'आबेहयात' से जो कुछ उद्धृत किया है वह बहुत उपयुक्त है। अबकी सरस्वती में कई लेख अच्छे हैं। बहुत खुशी की बात है कि 'ग्रन्थमाला' निकली। 'विक्रमांकचर्चा' को भी 'निकलवाइए। रीडर्स और शिक्षा सरोज के निकालने का भी इंडियन प्रेस वालों को ध्यान दिलाइए। सरकारी स्कूलों में न सही सर्वसाधारण पाठशालाओं में उनका आदर अवश्य होगा। काम की चीजें हैं। - 'ऋतुसंहार' का अनुवाद आपने सम्पूर्ण का किया था या कुछ अंश का। 'गंगा- लहरी' का अनुवाद अब कहीं मिलता है कि नहीं? किस प्रेस में छपा था। ___ पारनेल का 'हर्मिट' गोल्डस्मिथ से बहुत ही अच्छा और विस्तृत है । अवकाश मिले तो उसे जरूर देखिए। कृपाकांक्षी पद्मसिंह (२२) ओम् नायकनगला ३०-५-०६ श्रीमत्सु सादरं प्रणामाः ___आपका ६-५ का कृपापत्र मिले मुद्दत हुई। 'सरस्वती' की प्रतीक्षा करते २ उत्तर में विलम्ब हुआ। अबकी 'सरस्वती' में कई लेख बहुत अच्छे हैं। 'कृत्रिम हीरा' बनाने की विधि बड़ी सरल भाषा में समझाई गई है। वैज्ञानिक विषय ऐसी ही सर्वबोधगम्य भाषा में लिखे जाने चाहिए। प्रोषितपतिका-चांदनी की कहानी भी दर्दभरी है, क्या सचमुच किसी प्रोषितपतिका ने स्वयं ही यह अपनी दशा का वर्णन किया है?