पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१२३

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१०८ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र आशा है इन्हें सरस्वती में आश्रय मिलेगा, क्योंकि यह उनका पहला ही प्रणया- नुरोध है। ___एक श्लोक उसी प्रकार का और मिला है, जिसका भाव 'मोमिन' के एक मश- हर शेर से मिलता है, देखिए- "दारिद्रय ! शोचामिभवन्तमेवमस्मच्छरीरे सुहृदित्युषित्वा। विपन्नदेहे मयि मन्दभाग्ये, ममेति चिन्ता क्वामिष्यसि त्वम् ॥" (मृच्छकटिक-१म, अंक) ___(चारुदत्तोक्तिः ) "तू कहाँ जायगी कुछ अपना ठिकाना कर ले, हम तो कल, ख्वाबे अदम में, शबे हजिरां होंगे" नोट के लिए अभी कुछ उपयुक्त सूझा नहीं कि क्या लिखू, और किस प्रकार का तारतम्य दिखलाया जाय, यदि कोई बात याद आ गई तो लिख दूंगा। सरस्वती के लुटेरों को क्या किया जाय, समय का प्रभाव है, 'अचौरहार्य विद्याधन को भी चौर्यमय उपस्थित हो गया! अच्छा लूटने दीजिए। देव-दैत्यों के लूटने पर भी “अद्यापि रत्नाकर एव सिन्धुः" ___ 'हिन्दी ग्रन्थमाला' हमारे पास भी आ गई, अच्छी है। हमें याद पड़ता है एक बार आपने सरस्वती में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का कुछ हाल लिखा था। उसकी भाषा बड़ी उत्तेजक थी। वह फिर भी ट्रेक्ट की सूरत में छपना चाहिए। अब की सरस्वती में 'परलोक से प्राप्त पत्रों के पढ़ने की उत्कण्ठा है। शिक्षा आधी हो गई ? बड़ी खुशी की बात है। परमात्मा करे, उसके शीघ्र ही पुस्तकाकार में दर्शन हों। पद्मसिंह (२४) ओम् २४-६-०६ श्रीमत्सु सादरं प्रणामाः। श्रीमान् का १७-६ का कृपाकार्ड मिला, आनन्दित किया। मैं एक हफ्ते से मुरादाबाद के जिले में घम रहा हूं, २६-६ तक घर पहुचूंगा, जून की 'सरस्वती' के तब ही दर्शन होंगे।