पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१३१

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र की फुरसत बहुत कम दी। इसी कारण यथासमय पत्र लिखने में विलम्ब होता रहा, अस्तु। ___आपकी नेत्र विकृति का हाल पढ़कर दुःख हुआ, अब क्या दशा है ? इस प्रसंग का हमें एक श्लोक याद आ गया जो 'विवृतोक्ति' के उदाहरणों में है- "सुभ्र! त्वं कुपिते त्यपास्तमशनं त्यक्ताः कथा योषितां, दूरादेव विवर्जिताः सुरभयः स्रग्गन्धधूपादयः। कोपे 'रोगिणी मुंच मय्यवनते दृष्टे प्रसीदाधुना, सत्यं त्वद्विरहाद्भवन्ति दक्षिते सर्वा ममान्धा दिशः" पण्डितराज का 'मत्तातपादै०' श्लोक उपहासपरक मालूम होता है, वराह- मिहिर ने बृहत्संहिता के 'स्त्री प्रशंसा' प्रकरण में मनु के नाम से एक श्लोक लिखा 'अजाश्वा मुखतोमेध्या गावोमध्यास्तु पृष्ठतः। ब्राह्मणाः पादतोमेध्याः स्त्रियो मेध्यास्तु सर्वतः।' शायद इस पर उपहास किया है कि 'गौ का पिछला भाग (गोमय तथा गोमूत्र निकलने का स्थान) पवित्र है तो गंधी का वह स्थान पवित्र क्यों नहीं?' इसमें क्या युक्ति है ? गंधी के लिए 'रासभ धर्मपत्नी' शब्द भी हास्यजनक है। पर श्लोक में तो 'अंगगवा पूर्व० है-पृष्ठ' नहीं? 'सरस्वती' की कविता को कौन से नागरी वाले भद्दी बताते हैं ? आरा के या बनारस के ? उन बेचारों का भी कुछ दोष नहीं, किसी ने सच कहा है- "विपुल हृदयाभियोग्य खिद्यति काव्ये जड़ो न मौख्ये स्वे। निन्दति कंचुककारं प्रायः शुष्कस्तनी' नारी।" मैं अनधिकार चेष्टा से डरता है इसलिये आपकी आज्ञापालन न करने का उपालम्भ सुनना पड़ता है। मैंने दो बार अपना फोटो खिंचवाया है, एक छात्रावस्था में, दूसरा एक ग्रूप में, अब कभी फिर खिचवाऊं तो भेजूं। ___ठा० शिवरत्न सिंह शायद जालन्धर में ही हों, ठहरिए, मैं उनका पता मालू- मकर लूं, तब 'शिक्षा' भेजिए। ___शंकर जी का वह पद्य है तो कालिदास के श्लोक की छाया पर ही, पर कालिदास के यहां 'पटुत्व' से अभिप्राय पराभिसन्धान पटता' से है, जिससे स्त्रियों के प्रति अनादर द्योतन होता है। इन्होंने उसे नव्य सभ्य समाजनुदित बना दिया, यह विशे- षता है, वैसे ही इनका १४वां, पद्य न्याय दर्शन के इस सूत्र की व्याख्या है:- - - १.सो नागरी-सभा भी 'शुष्कस्तनी नारी है।