पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१३३

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११८ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र "कथापि खलु पापानामलमश्रेयसोयतः।" श्री पण्डित लेखराम जी आर्यपथिक का जिक्र जब हमने इसमें पढ़ा, बड़ी हृदय वेदना हुई। पण्डित जी हमारे भी मित्र थे, और इसी पिशाच ने उनका कतल कराया था, क्योंकि पण्डित जी ने कादियानी के जाल से लोगों को बचाने का जितना शुभ उद्योग किया था वैसा अन्य किसी ने नहीं। तीन चार बड़ी बड़ी जखीम किताबें उन्होंने इसके पुस्तकों के उत्तर में लिखी है, इसके मिशन को उन्होंने बड़ी हानि पहुंचाई। हिंदू धर्म पर इसने बड़े नापाक हमले किये हैं, कहीं कृष्णावतार होना सिद्ध किया है, कहीं कल्कि, कहां तक गिनाएं, यदि इसकी पुस्तकों का कुछ अंश भी आपको सुनाया जाय तो आप जानें कि हिन्दू धर्म के साथ इसने क्या सलूक किया है, जिसका चरित गर्ग जी लिखने बैठे हैं। खैर, अब तो यह निकल ही गया, इसके शेषांश को जिसका उल्लेख आपने नोट में किया है, मैं पूरा करना चाहता हूँ, इस विषय की सामग्री के लिए मैं अपने मित्र सम्पादक 'आर्य मुसाफिर' जालन्धर को लिखता हूँ, यद्यपि इस विषय की कुछ सामग्री पण्डित जी की पुस्तकें मेरे पास भी हैं, पर वह इससे पूरे अभिज्ञ हैं। 'अग्निहोत्री' की भी ऐसी लीला है, तद्विषयक कुछ ट्रैक्ट आपके पास भेजूंगा। अब के किसी पुस्तक की समालोचना क्यों नहीं निकली? 'योगदर्शन को न भूलिए। शरद्वर्णन में माघ का यह श्लोक अच्छा है- "समय एव करोति बलाबलं, प्रणिगदन्त इतीव शरीरिणाम् । शरदि हंसरवाः परुषीकृत स्वर मयूर. मयूर मणीपताम् ॥" ये दो पद्य भी खूब हैं- "अथोपगूढ़े शरदा शशांके प्रावृड्ययो शान्त तडित्कटाक्षा। कासां न सौभाग्य गुणांगनानां नष्ट: परिभ्रष्ट पयोधराणाम्।" "समुल्ल सत्पंकजलोचनेन विनोदयन्ती तरुणानशेषान् । शुद्धाम्बरा गुप्तपयोधरश्रीः, शरन्नवोढेव समाजगाम।" हेमन्तवर्णन में ये पद्य अच्छे हैं- "हे हेमन्त! स्मरिष्यामि याते त्वपि गुणद्वयम् ।' अपत्नशीतलं वारि निशाश्चाध्ययनक्षमा हेमन्ते बहु दोषाढ्ये द्वौगुणौ सर्वसम्मतो। अपत्नशीतलं वारि सुरतं स्वेदवर्जितम्।"