पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१३४

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११९ पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम "लज्जा प्रौढमृगीदशामिव नवस्त्रीणां रतेच्छा इव। . स्वैरिण्या नियमा इव स्मितरुचः कोलांगनानामिव। दम्पत्योः कलहा इव प्रणयिता वारांगनानामिव । प्रादुर्भूय तिरोभवन्ति सहसा हैमन्तिका वासराः।" (हेमन्त वर्णन में इन्हें निकालिए) . .. (कवि और कविता विषयक पद्यरत्नत्रयी) “मन्दं निशिपते पदानि परितः शब्दं समुद्वीक्षते। नानार्थाहरणं च कांक्षति मुदा लंकारमाकर्षति ।। आदत्ते सकलं सुवर्णनिचयं धत्ते रसान्तर्गतं। दोषान्वेषणतत्परो विजयते चौरोपमः सत्कवि॥" "भूतोवेश निवेशिताशयइव श्लोकं करोत्याशयः। श्लाघन्त कविरद्भुतोयमिति तं मिथ्या जना विस्मिताः॥ . द्वित्राण्येव पुरः पदानिरचयन् पश्चात्समालोचयन्। दूरं यः कवितां निनीषति कविः कामीव स स्तुत्यताम्॥" "धन्यास्ते कवयो यदीयरसनारूक्षध्वसंचारिणी। धावन्तीव सरस्वती द्रुतपदन्यासेन निष्क्रामति॥ अस्माकं रसपिच्छले पथिगिरां देवी. नतीतोदयं । पीनोत्तुंगपयोधरेव युवति मन्थिर्यमालम्बते ॥" (इन्हें 'सरस्वती' में निकालिए और शीघ्र) कृपापात्र पद्मसिंह (३०) ओम् . नायकनगला ७-११-०६ मान्यवर पण्डित जी मैंने एक लिफाफा श्रीमान् की सेवा में भेजा था। उत्तर न मिलने से सन्देह