पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१३८

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पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १२३ इस नैषधीय पद्य के साथ इसे (सौदा के शेर को) पढ़िए- "कि इश्क का शौला है जो भंड़का तो रहा क्या ऐ जान निकल जा कि लगें मुत्तसिल आतिस।" मैं आजकल एक जैन सम्बन्धी महाकाव्य देख रहा हूँ। उस पर कुछ लिखने का भी विचार है, उसके महाकवि ने कालिदासादि महाकवियों के सूक्ति रत्नों को इस प्रकार चुराया है कि उसके साहस पर आश्चर्य होता है। आपको जो 'सरस्वती' के लेख चुराये जाने की प्रायः शिकायत रहा करती है, उसको देखकर आपको सन्तोष होगा कि यह कोई नई बात नहीं है, किन्तु-'एष धर्मः सनातन' मैंने उस पर बहुत से नोट्स कर लिये हैं, शीघ्र लिखना प्रारंभ करूँगा। इस प्रकार शायद आपकी आज्ञा पालन भी हो जाय और कालीदासादि के चुराये हुए माल का भी कुछ पता चल जाय। अगस्त की ग्रंथमाला अब देखने को मिली है, 'सरस्वती' के विलायती कागज पर छपने की जो शिकायत है क्या वह दूर हो सकती है ? कृपापात्र पद्मसिंह (३३) ओम् जिला, मुरादाबाद ३-१२-०६ श्रीमत्सु प्रणतयः २६-११ का कृपापत्र हमें यहाँ कल मिला, यहाँ हम अपने अनुज के द्विरागमन में आये हुये थे। . _____ नवम्बर की 'सरस्वती' हमें बहुत पसन्द आई, पं० गिरिधर शर्मा की भव्य- मूर्ति और उनकी मनोहारिणी कविता अवलोकन कर चित्त बहुत प्रसन्न हुआ, चित्र के साथ परिचय आपने बहुत संक्षिप्त दिया, जन्मभूमि, आयु आदि का भी उल्लेख उचित था, आइन्दा चित्रों के साथ इसका ख्याल रखिए। कुछ दिनों से आपने मजलूम अबलाओं का पक्ष लिया है, इससे हर्ष होता है। ठहरौनी खूब है, उसके २०वें पद्य ने चित्त में करुणा पैदा की, २६वें पद्य से जो शैली