पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१४०

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१२५ पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम (३४) नायकनगला १६-१२-०६ श्रीमत्सु प्रणामाः उस सफर से हम परसों मकान पर वापस आये हैं, तभी आपका ७-१२ वाला कृपापत्र मिला, खतरनाक प्लेग के सबब आपको हिजरत करनी पड़ी, इसका अफ- सोस है। २६-१२ को एक बरात में अलीगढ़ जाने का विचार है, यदि हो सका तो वहां से अपना फोटो लिवाकर आपकी सेवा में भेजने की कोशिश करूँगा। अब के जब आप कानपुर लौटे तो श्री कण्ठचरित अवश्य भेजिए, जिस जैन काव्य का मैंने पहले एक पत्र में जिक्र किया था, उसके कवि ने मालूम होता है कि कुछ माल 'श्रीकण्ठ चरित' से भी चुराया है, श्रीकण्ठ का जो दो एक श्लोक मैंने नोट कर रक्खा था उनसे जैन काव्य के दो एक श्लोक मिल गये। 'विक्रमांकदेव चरित' से तो उसने बहुत कुछ लिया है। इसलिए उसे देखने की भी अब फिर जरूरत है, उसके लिए मैने लाहौर को लिखा था (उसकी एक कापी मैं गत वर्ष वहां देख आया था) पर वहां नहीं मिला, अब बनारस को लिखा है, यदि वहाँ से भी न मिल सका तो फिर आपसे मागूंगा। पत्र में श्लोकों के भावार्थ लिखने की गुंजायश नहीं रहती इसलिए नहीं लिखा करता, दूसरे कुछ आवश्यकता भी प्रतीत नहीं होती, आपकी आज्ञा है तो 'कन्थाखण्ड' को भावार्थ सहित फिर लिखता हूँ। भावार्थ में कमी बेशी या उसे दुरुस्त करने का आपको अधिकार है। ____ भारतमित्र' के उपहार की पांचवी पुस्तक तो कुछ और ही निकली, अब शायद “विषस्य विषमौषधं के भी दर्शन न हो! स्पेन्सर के चित्र के लिए, बा० काशीप्रसाद को लण्डन लिखिए, सेंट जान का कुछ हाल भी चित्र के साथ चाहिए था। पद्मसिंह नायकनगला ५-१-०७ श्रीमत्सु सादरं नतितनयः २१-१२ का कृपापत्र हमें अलीगढ़-यात्रा से लौट कर मिला, विक्रमांक देव चरित के लिए हमने पारसाल बम्बई को लिखा था, अब लाहौर वालों ने भी पूछ देखा, वहां नहीं मिलता, कृपया 'श्रीकण्ठ' के साथ उसे भी भेजिए । आपकी बड़ी