पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१४१

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१२६ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र ही कृपा हो यदि उसकी १ कापी बनारस आदि के किसी प्रसिद्ध पुस्तक विक्रेता के यहाँ से हमारे लिए भिजवा दें, हमारी इच्छा है कि वह हमारे पास मौजूद रहे, पर नहीं मिलता। 'सरस्वती' का ७वां साल सानन्द पूरा हो गया, इसकी बधाई है । आशु कवि जी की वह कविता जो उन्होंने स्वदेशी वस्तु पर' और 'स्वामी दयानन्द पर बनाई थी यदि उसकी नकल आपके पास हो तो हमें भी भेजिए, या कानपुर आ० स० में वह कविता हो तो सूचना दीजिए। मैं अपना फोटो आपको भेजूंगा, पर 'सरस्वती' में देने के लिए नहीं, मेरा कोई हक नहीं कि वह 'सरस्वती' में निकले, मैं उन महापुरुषों में प्रविष्ट होने की योग्यता कदापि नहीं रखता जिनका जिक्र 'सरस्वती' में किया जा सके, इस तक- ल्लुफ से मुझे माफ रखिए। हाँ, इस शर्त पर फोटो भेजूंगा कि आप भी 'टोगों' वाले नियम को मेरे विषय में शिथिल करके अपना फोटो भेजने की कृपा करें। ___ 'प्रियम्वदा' वाली आपकी कविता के १२वें, पद्य को पढ़कर मुझे एक श्लोक याद आ गया, जिसे कुछ अन्य पद्यों के सहित लिखता हूँ। 'गाथासप्तशती' की एक गाथा हमें बहुत पसंद आई। जिसका संस्कृत अनुवाद देकर आपसे प्रार्थना करता हूँ कि उसे किसी सुन्दर संस्कृत छंद में हमारे लिए अनुवाद कर दीजिए" तद्यथा :- ___ "स्फरिते वामाक्षि! त्वयि यद्येष्यति सप्रियोद्यतत्सुचिरम्। संमील्व दसिणं त्वयैवेतं प्रलोकयिष्ये॥" गा० श० २ गा० ३७।। यह किसी प्रोषितपतिका या विरहणी की (वामनेत्र को फरकता देखकर) उक्ति है। नेत्र के लिए इनाम अच्छा मुकरिर किया है !!! हिलते हुए कुंडल को देखकर किसी की उक्ति- __“यत्पूर्व पवनाग्निशस्त्रसलिलैश्चीणं तपोदुष्करं, तस्यैतत्फलमीदृशं परिणतं यज्जातरूपं वा० पु०। मुग्धा पाण्डु कपोलचुम्बन सुखं संगश्चरूलोत्तमैः, प्राप्त कुण्डल! वांछसे किमपरं यन्मूढ़! दोलायसे?" अर्थात् पहले सुनार के पास बनते समय, वायु, अग्नि, शस्त्र-सुनार के औजार और जल के द्वारा (आभूषण गड़ते समय सुनार सोने को गलाने के लिए आग में रखकर अग्नि को प्रदीप्त करने को नलकी से फूंक मारता है, फिर औजारों से घुड़कर आभूषण को पानी में डाल देता है) दुष्कर तप तूने किया था, उसका यह- इस प्रकार का फल मिला है कि स्वर्णमय तेरा शरीर है, मुग्धा के पाण्डु कपोल चुम्बन का सुख और लोत्तमों का सहवास तुझे प्राप्त है, फिर हे मूढ़ कुण्डल! इससे अधिक और क्या चाहता है. जिसके लिए तू डोल रहा है?