पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१४९

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पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १३५ हाली की रूबाइयों का किसी अंग्रेज ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है, और शायद हाली का कुछ चरित भी उसमें दिया है। या रहने दीजिए, फिर सही। हां, हाली अंग्रेजी नहीं जानते, अच्छी बात है 'सरस्वती' उनके पास जाने लगे। अकाल मृत्यु आदि की बातें न लिखा कीजिए, दुःख होता है। पद्मसिंह (४२) ओम् . नायकनगला २८-४-०७ श्रीमत्सु सादरं प्रणामाः ९-४ के कृपापत्र के उत्तर में बहुत विलम्ब हो गया, क्षमा कीजिए, दो हफ्ते से चान्दपुर (डाकघर) में और उसके आसपास प्लेग प्रचण्ड है, लोग डरते हैं, आना जाना बन्द है, इस बीच में मैं घर पर कम रहा, ऐसे ही दो एक कारण विलम्ब के हो गये। बा० गंगाप्रसाद एम० ए० गोरखपुर में आजकल डिप्टी कलेक्टर हैं, वह मुद्दत से प्राचीन आर्यों पारसियों पर एक पुस्तक लिख रहे हैं, उन्होंने एतद्विषयक अच्छे २ प्रमाणों का संग्रह किया है, और खूब खोज की है, आप उनसे लिखा पढ़ी करें तो उसमें से बहुत कुछ मसाला 'सरस्वती' के लिए मिल सकता है, वह हिन्दी अच्छी लिख लेते हैं, स्वभाव के भी बहुत नम्र और सभ्य हैं। गत कांगड़ी-गुरुकुल के उत्सव पर उसी के आधार पर उन्होंने व्याख्यान दिया था, जिसे श्रोताओं ने बहुत उत्साह और श्रद्धा से सुना था, 'सरस्वती' के लिए भी यह विषय रुचिकर होगा, कोशिश कीजिए। सफलता की पूरी आशा है। पिछले साल जब हम कांगड़ी गये थे तो ला० मुन्शीराम जी के ज्येष्ठ पुत्र श्रीयुत हरिश्चन्द्र ब्रह्मचारी की कुछ कविता आपके पास भेजने को लाये थे, पर वह कागज कागजपत्रों में रह गया, अब हाथ आया है, अब उसे श्रीमान् के पास भेजता हूँ, देखिए। और यदि उचित समझिए तो उसे या उसके किसी अंश को 'सरस्वती' में दे दीजिए।