पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१५

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पास हुए है, उनका नाम है....., उनका और मेरा अजमेर तथा हरद्वार में बहत' साथ रहा है। उस समय उनसे हिंदी भाषा तक लिखनी न आती थी, संस्कृत शब्दों का उच्चारण भी ठीक न होता था, अवस्था ३०-३५ वर्ष की होगी, वह भी पास हो गए। यह महाशय खत्री हैं। संस्कृत के लिये शुभ लक्षण है।" . (अंतिम वाक्य चुभती हुई व्यंग्योक्ति से गर्भित है)। . द्विवेदी जी पर संस्कृत कवियोंका गहरा प्रभाव था पर मराठी जीवन और साहित्य का भी उन पर प्रभाव था। मराठी कविता में संस्कृत के वृत्तोंका व्यवहार' होता है। पदविन्यास भी प्रायः गद्य का सा ही रहता है। इसी मराठी के नमूने पर द्विवेदी जी ने हिंदी में पद रचना शुरू की। आगे चल कर द्विवेदीजी के प्रभाव के कारण हिंदी में परंपरा से व्यवहृत छन्दों के स्थान पर संस्कृत के वृत्तों का चलन पड़ा, जिसके कारण संस्कृत पदावली का समावेश बढ़ने लगा। श्री मैथिलीशरण' गुप्त जी को १९-४-११ के अपने एक पत्र में द्विवेदी जी ने लिखा है-"मुसद्दस को किसी मौलवी से जरूर सुनिए और समझिए। हरिगीतिका छन्द बुरा नहीं। कविता' खूब ओजस्विनी और यथास्थान कारुणिक होनी चाहिए। संभल संभल लिखिएगा। देरी हो तो हर्ज नहीं। नमूने के लिए थोड़ी 'सरस्वती' में पहले छापेंगे।" (द्विवेदी पत्रावली पृष्ठ ११६)। इसके अतिरिक्त द्विवेदी जी की प्रवृत्ति सीधी सादी भाषा की ओर भी थी। 'सरस्वती' पत्रिका द्वारा उन्होंने कविता में बोलचाल की भाषा का आग्रह किया। इसी कारण उनके काल में इतिवृत्तात्मक पद्यों का ढेर भी लग गया था। द्विवेदी जी की भाषा में उर्दू का भी अच्छा पुट था। संभवतः इसका उनके मित्रों ने विरोध भी किया था। इसका प्रमाण उनके पत्रों में मिलता है। उन्होंने स्व. श्रीधर पाठक को २९-४-०६ के अपने एक पत्र में लिखा था-'सरस्वती' में कुछ लेख जानबूझ कर उर्दू मिश्रित भाषा में लिखे जाते हैं। इसी से हिंदी और उर्दू रीडरों की भाषा एक रक्खी गई है। 'सरस्वती' का प्रचार मदरसों में बहुत है। अतएव कोई कोई लेख मदरसों के लड़कों और मुरिसों के साथ लाभ के लिए ही लिखे जाते है। ठेठ हिंदी या संस्कृत मिश्रित हिंदी का आदर करने वाले बहुत कम है। यदि 'सरस्वती' के खर्च का भार उन पर ही छोड़ दिया जाय तो उसका निकलना ही बंद हो जाय। परन्तु इससे आप यह न समझिए कि हम आपको लेख लिखने से मना करते हैं। यदि आपके लेख से हिंदी का कुछ भी हित होने की आशा हो, तो आप अवश्य लिखिए। हम उसे सिर आंखों पर लेंगे। पर यदि किसी की प्रणाली विशेष पर आक्षेप न हो तो अच्छा। लेख ऐसा हो कि उसकी बातें सब पर घटित हो सके। आपकी लेखनी से आपको भी 'सरस्वती के विरोध में लेख अच्छा