पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१५४

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१४० द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र वैसी ही प्रायः इसकी थी। उसके पश्चात् फिर सिकन्दराबाद में भी दिखाया, तब भी वहां के अध्यापक आदिकों से कुछ विशेषता प्रकट नहीं हुई थी। ऐसी दशा में सहसा शास्त्री पास कर लेना आश्चर्यावह है। इसके अतिरिक्त इस साल पंजाब से एक और महाशय शास्त्री पास हुए हैं, उनका नाम है केशवदेव, उनका और मेरा अजमेर तथा हरद्वार में बहुत साथ रहा है। उस समय उनसे हिन्दी भाषा तक लिखी न जाती थी, संस्कृत शब्दों का उच्चारण भी ठीक नहीं होता था, अवस्था ३०-३५ वर्ष की होगी, वह भी पास हो गये! ! यह महाशय खत्री हैं। संस्कृत के लिए यह शुभ लक्षण है। 'सरस्वती' के पहले वर्षों में जितने जीवन चरित आपकी लेखनी से निकल चके हैं वह पृथक् पुस्तकाकार छपने चाहिएं, उनमें से 'लक्ष्मीबाई,' चिपलूणकर' और 'मधुसूदन दत्त' तो बहुत हृदयग्राही हैं। आपके पता देने पर व्यास जी का 'बिहारी बिहार' हमने मंगाया, अब आया है, जैसा आपने लिखा था उसकी भूमिका ही अच्छी है, कुण्डलिया तो प्रायः चिपकाई ही गई हैं। मूल कविता का भाव अभिव्यक्त करने के स्थान में कुण्डलियाओं द्वारा अपना ही चर्खा अधिक गाया है, तथापि ग्रन्थ अच्छा और उपादेय है। इसका पता देने के लिए आपको बहुत २ धन्यवाद है। यदि आपने डा. ग्रियर्सन की मुद्रित कराई सतसई देखी हो तो कृपया उसका पता और मूल्य लिखिए, उसकी भूमिका आदि तो अंग्रेजी में ही होगी पर उसमें "लालचन्द्रिका" टीका शुद्ध मिलेगी। हमारे पास लालचन्द्रिका अशुद्ध और अपूर्ण है। ___ 'सतसई का एक अनुवाद 'विद्वद्वन्दशिरोमणि' 'विद्यावारिध' पं० ज्वाला प्रसाद ने अति ललित मधुर मुग्ध टीका से 'सर्वांगभूषित किया है! ! कहते हुए दुःख होता है कि ऐसा दुष्ट अनुवाद मेरे देखने में नहीं आया। ला० सीताराम ने भगवान् कालिदास के साथ ऐसा सलूक नहीं किया जैसा इन्होंने कविवर श्री बिहारी- लाल जी के साथ अन्याय किया है ! ! आश्चर्य यह है कि वह इनका स्वतन्त्र का नहीं है । 'लाल चन्द्रिका' को देखकर लिखा है पर उसे भी हजरत नहीं समझे। उस पर तुर्रा यह कि आप विद्वद्वन्द शिरोमणि, और विद्यावारिधि का पुछल्ला लगाए बैठे हैं। अफसोस ऐसे आदमियों को कोई दण्ड देनेवाला भी नहीं रहा, ये लोग परलोकवासी कवि कुंज्जरोंकी कीति पर धब्बा लगा रहे हैं, इन जैसों के आश्रय-- दाता यन्त्रालयाधीशों को क्या कहा जाय, जो ऐसे भ्रष्ट पुस्तकों का प्रचार कर प्रश्रय के बदले पाप कमा रहे हैं! इससे तो वही समय अच्छा था, जब यहां प्रेस का रिवाज'