पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१५५

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १४१ नहीं था, उस समय ऐसे दुष्ट पुस्तकों का सर्वसाधारण में प्रचार तो नहीं होता था। ___ यदि सरस्वती' के अतिरिक्त आप एक और मासिक या त्रैमासिक पत्र ऐसे पुस्तकों की आलोचनाओं के लिए निकालें तो अच्छा हो जिसमें प्राचीन काव्यों के दूषित अनुवादों की खबर ली जाया करे। मध्यप्रदेश की पाठ्यपुस्तकों के विषय में तो आपने नोट लिखा है, पर हिन्दी भाषा की मातृभूमि अपने देश की पाठ्य पुस्तकों को भी आपने देखा है, जो अभी प्रचलित हुई हैं ? देखिए किस प्रकार हिन्दी की सौत यह सरकारी बोली इस प्रान्त में प्रबल होती जाती है ? हिन्दी का गला घोटने को उर्दू ही बहुत थी। हिन्दी भाषा पर यह पोथी आपने कब लिखी है जिसका नोटिस 'सरस्वती' में है ? पहली ही लिखी पड़ी थी या नवीन रचना है ? 'बार्हस्पत्य' जी से आपने अच्छा लेख प्रारंभ कराया है, ऐसे लेखों की हिंदी में बड़ी जरूरत है। शंकर कवि भी आपके हाथ अच्छे लगे हैं, इनकी कविता और सरस्वती “साधारणोभूषणभूष्यभावः" वाली बात है।। सरस्वती दिनोदिन उन्नति कर रही है यह देखकर बड़ा हर्ष होता है, अब तो सरस्वती के स्वामी को घाटा भी न रहता होगा? पद्मसिंह (४७) गुरुकुल कांगड़ी "हरद्वार" २९-११-०७ श्रीयुत मान्य महोदयेषु प्रणतयः श्रीमान् का १८-११ वाला कृपापत्र हमें घर से वापस आया हुआ यहां मिला। 'उस हाथ की पीड़ा ने हमें यहां तक तंग किया कि उसके उपचारार्थ यहां के डाक्टर की शरण में आना पड़ा। कुछ कुछ आराम हो चला है । मानसिक परिश्रमाधिक्य से उत्पन्न आपकी पीड़ा का हाल सुनकर बड़ा दुःख हुआ। ऐसी दशा में काम कम ही करना चाहिए । 'सरस्वती' के पाठकों और हिंदी प्रेमियों का दुर्भाग्य! ! यद्यपि काम थोड़ा करके भी 'सरस्वती' को तो आप अच्छी तरह चला सकते हैं पर अन्यान्य उत्तम पुस्तकें लिखकर जो हिन्दी साहित्य को आप अलंकृत कर रहे हैं, उसमें बाधा