पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१५७

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पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १४३ ___(४८) नायकनगला १६-१२-०७ श्रीमान्यवर पण्डित जी प्रणाम एक कार्ड में कई दिन हुए भेज चुका हूँ, पहुँचा होगा। “सम्पत्तिशास्त्र" यदि आप इन्डियन प्रेस को दे चुके तो खैर। गुरुकुल वाले चाहेंगे तो (छपने पर) वहीं. से खरीद लेंगे। ____ 'सरस्वती' का नवां वर्ष कुशल पूर्वक बीता, इसके लिए आपको बधाई है। 'सरस्वती' की नकल करनेवाली 'कमला' के हमने अभी हाल में ही दर्शन किये हैं, पर वह बात कहां! "क) सपत्न्यः प्रविशाययुर्विशालयेदक्षियुगं न कापि" ____ अभी उस दिन गुरुकुल में ला० मुंशीराम जी प्राइवेट बातचीत में कहने लगे कि एक पत्र 'सरस्वती' जैसा सचित्र और सुन्दर हम गुरुकुल की ओर से भी निका- लना चाहते हैं। इससे अनुमान हो सकता है कि 'सरस्वती' का रंगढंग लोगों को कैसा पसन्द है, निःसन्देह 'सरस्वती' ने हिन्दी साहित्य में एक नवीन जीवन का संचार कर दिया है। ___लाहौर से वापस होते हुए हम अमृतसर उतरे थे, वहां दरबारसाहब पर पुलीस की चौकी में एक हीरासिंह सार्जन्ट ब्राह्मण, अंबाले का रहनेवाला है, मूंगरी फिराने के फन में वह अद्वितीय है। बड़े २ राजे महाराजे तथा अंग्रेज अफसरों के सार्टिफिकेट उसके पास हैं, जिस समय प्रिन्स आफ वेल्स वहां गये थे तो उनके सहचर किसी अंग्रेज ने उसका कर्तब देखकर एक सार्टिफिकेट दिया है, जिसमें हीरासिंह को उसने सैन्डो साहब का भी गुरू माना है, उस सार्टिफिकेट की नकल हमारे एक साथी सज्जन ने कर ली थी, जो आपके पास भेजता हूँ। यद्यपि वह उस दिन कुछ बीमार था, तथापि उसने ६ मन पक्के की गरी हमारे सामने आसानी से उठा लीं। हमने उससे कहा था कि तुम अपना चित्र और चरित्र हमें दो तो एक पत्र में उसे दें। हमें इतना अवकाश नहीं था जो उसका चित्र और चरित्र लेकर आपके पास भेज सकते। यदि आपके परिचित कोई अमृतसर में हों तो उनके द्वारा मंगाकर इस इंडियन सैन्डो का हाल सरस्वती में दीजिए। विद्यावारिधि जी की टीका की आलोचना मैंने लिखनी शुरू कर दी है। भूमिका आदि की आलोचना में ही २४-२५ पृष्ठ फुलीस्केप के भर गये हैं। आलोचना 'सरस्वती' के कई अंकों तक चलेगी। जितनी होती जाय उतनी ही भेजता जाऊँ या समाप्त कर के भेजूं ? नव वर्ष के लिए मंगल किरण स्वरूप मनोरंजक पद्य भेजता हूँ। यदि हो सके तो जनवरी ही में दीजिए। .