पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१६४

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१५० द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र · उक्त ब्रह्मचारी के छोटे भाई ने गत शिवाजी जयन्ती पर एक कविता लिखी थी, वह भी आपके पास भेजने को मेरे पास आई है, सो भेजता हूं, नाम वह भी देना नहीं चाहते, इसे भी कल्पित नाम से दीजिए, इसके लिए भी सख्त तकाजा है, जहां तक हो सके अवश्य 'सरस्वती' में दे दीजिए। अब आपका स्वास्थ्य कैसा है ? क्या पं० गौरीदत्त जी अब यहां न आएंगे? इधर गर्मी गजब ढा रही है, यहां पर मौसम बुरा होता है, आपका इरादा कहीं बाहर जाने का तो नहीं है, जैसा उस समय विचार था कि मई जून में विजनौर की ओर जायंगे। भवत्कृपापात्र पद्मसिंह (५३) ओम् अजमेर १४-८-०८ श्रीयुत मान्यवर पण्डित जी प्रणाम दोनों कृपाकार्ड यथासमय मिल गये । सम्भव है शंकर जी ने पहिले चित्रों पर कविता न लिखी हो पर मिला के विषय में ऐसा नहीं हो सका, उस पर उन्हें लिखनी पड़ेगी, लिखें और फिर लिखें, इसके लिये मैं प्रतिभू वनता हूँ। उन्होंने पक्का वादा किया है। रामलीला के अवसर विजयदशमी तक वह कविता चित्र सहित अवश्य निकलनी चाहिए। यदि शंकर जी का आग्रह चित्र के लिये हो तो वह चित्र बनवा दीजिए। ऐसा नहीं हो सकता कि...न लिखें, जबतक वह कविता न लिख देंगे...मैं उनका पिंड नहीं छोडूंगा, बराबर पत्र लिखता रहूँगा। आशा है, अब आपको विश्वास हो गया होगा कि कविता जरूर लिखी जायगी। बि० एन की बढ़ी हुए गुस्ताखियों और बेहूदा बकवासों से तंग आकर उसकी गांशमाली करनी पड़ी, पर लेख पढ़कर आर्यन कैम्प में खलबली सी पड़ गई है, बहुत से चोर अपनी डाढ़ियों में तिनके टटोलने लगे हैं, कोई कहता है कि सिद्धान्तों का खून कर डाला। और कोई फर्माता है कि सभ्यता की नानी मर गई, अस्तु, बहुतों ने इस कारवाई को उचित भी बतलाया है, एक ज्यूरी के अनुकूल होने पर मिस्टर तिलक को सन्तोष था, इसलिए हमें भी है। आपका अनुमान सत्य