पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१५२ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र सोलंकियों के इतिहास के लेखक प्रसिद्ध पं० गौरीशंकर जी ओझा आजकल यहीं हैं। इनका चित्र और चरित्र 'सरस्वती' में छपने लायक हैं। अद्भुत पुरुष रत्न हैं। मैं उनका चित्र और चरित्र 'सरस्वती' के लिये प्राप्त करने की चेष्टा करूँगा, ठीक होगा? इस बार का मनोरंजक श्लोक तीन जगह अशुद्ध हो गया, संशोधक को इसकी ताकीद कर दीजिए, श्लोक बिलकुल शुद्ध छपने चाहिए, थोड़ा' संस्कृत पढ़े पाठक अशुद्ध याद कर सकते हैं। परोपकारी की समालोचना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। कृपापात्र पद्मसिंह श० (५४) ओम् रिप्लाइड अजमेर २७/८१०८ २३-८-०८ श्रीयुत मान्यवर पण्डित जी प्रणाम १६-८-०८ का कृपापत्र मिला। मैंने शंकर जी को कल फिर कविता के लिये लिखा है, आशा तो है कि वह कविता लिख देंगे, “हिजड़ों की मजलिस" के छापने में पशोपेश क्यों है ? हाँ, गिरिधर जी का विद्याभास्कर निकलता है कि अस्त हो गया। कई महीने से दर्शन नहीं हुए। इतना लिख चुके थे कि शंकर जी की कविता 'हिजड़ों की मजलिस' हमारे पास आई। एक पत्र भी मिला, उनके नाम (लौटाते समय का) आपका कार्ड भी। वह उसे परोपकारी में छापने की आज्ञा देते हैं, में आपसे निज के तौर पर पूछता हूं कि 'सरस्वती' में इसके प्रकाशित न होने का मूल कारण क्या है? कविता गत दोष, राजनैतिक दशा अथवा मत संबंधी विचार या कोई और खास बात ? कृपया स्पष्ट लिखिए, जिससे मुझे उसके विचार करने में सुभीता हो। मैंने अभी उसे अच्छी तरह पढ़ा नहीं है। यदि यह कविता परोपकारी में भी न छपी तो वह जरूर आपसे और मुझसे नाराज हो जायंगे। मेरे लिए एक और मुश्किल है, छापने से पहिले पत्र के अधिष्ठाता से मंजूरी लेनी पड़ती है, जब आपने ही उसे प्रकाशित न किया तो यहां से इजाजत मिलना कठिन ही है। अस्तु।