पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १५३ बि० एन और भक्तराम की बात मैंने साधारणतया लिखी थी, डरने या धब- राने की कोई बात नहीं, मैं ऐसी बात की परवाह नहीं किया करता। ____आपका सचित्र कविताकलाप" कब तक निकलेगा? शंकर जी का एक चित्र 'सरस्वती' में निकाल दीजिए न, आपने वह सिलसिला बंद ही कर दिया। ___ उन वर्षा-विषयक श्लोकों की भाषा ठीक कर दीजिए। १२ समानार्थक पद्य और भेजता हूँ, पहुँच लिखिए। अफसोस है कि बाणभट्ट से हम कुछ काम न ले सके, एक महाशय ने हमें मराठी पढ़ाने का वादा किया था, सो वह कहीं बाहर चले गये अस्तु आप उसका मर्माश 'सरस्वती' में दीजिए तो अच्छा हो, उसमें से कुछ संस्कृत पद्य उद्धृत करके हम उसे १०-५ दिन में लौटा देंगे। ____ आप सदा मेरी प्रार्थनाओं पर ध्यान देते रहे हैं, इसके लिए मैं अपने को धन्य समझता हूँ और आपको धन्यवाद देता हूँ, पर सतसई की आलोचना एक साथ पूरी न भेजने में प्रधान कारण अनवकाश ही है, अन्यथा आपकी आज्ञा का पालन कभी का हो गया होता। देखिए, कब अवकाश मिले, और उसके प्रकाशित होने की नौबत आवे, आप भी मजबूर और मैं भी, भवतु । अब आपको नींद तो अच्छी तरह आती है ? और तो सब कुशल है ? शंकर जी ने लिखा है कि उमिला पर कविता लिख रहे हैं। कृपापात्र पद्मसिंह (५५) ओम् अजमेर १०-९-०८ मान्यवर पण्डित जी महाराज प्रणाम २७-८-०८ का कृपापत्र यथासमय मिला, अनवकाश और चिंता स्वास्थ्य के कारण आज उत्तर देने बैठा हूँ। ऐसी दशा में अच्छा ही किया जो 'हिजड़ों की मजलिस' न छापी, बेशक जमाना १. स्थान न रहने के कारण पत्र के शीर्षस्थ पर।