पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१६८

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१५४ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र नाजुक है। यहाँ परोपकारी के कर्तार उसके प्रकाशन की आज्ञा न देंगे, लाचार लौटाना ही पड़ेगा, हिजड़ों का नसीब। __कविताकलाप के कुछ चित्रों पर बा० मैथिलीशरण जी से कविता लिखाइए, उनकी कविता अब खूब अच्छी होने लगी है, कुछ स्वयं लिखिए, दो एक पर शंकर जी भी लिख ही देंगे। और यदि चित्रभावानुसार कोई प्राचीन हिन्दी या संस्कृत की कविता मिल सके तो उससे भी काम चला लेना चाहिए, इस प्रकार कविता- कलाप का संकलन हो सकता है। पर जहां तक हो शीघ्र निकालिए। शंकर जी को फोटो के लिये मैंने भी लिखा है, अभी उत्तर नहीं दिया, हाँ, कृपया बा० मैथिलीशरण जी को लिख 'दीजिए कि वह अपना एक फोटो हमें भेज दें, हमें उनका पता याद नहीं रहा, और कदाचित वह हमारी बात पर ध्यान न दें, इसलिए आप ही लिख दीजिए, भूलिए नहीं। बहुत अच्छा, जो आज्ञा, अब कुछ दिनों के लिए समानार्थक पद्य लिखना बन्द करता हूं, सतसई समालोचना पूरा करने का प्रयत्न करूंगा। ___ आपके निद्रानाश रोग की औषध पं० रामदयालु जी वैद्य से लेकर दस पांच दिन में भेजूंगा, तयार हो रही है, उसे भी सेवन कर देखिए, शायद फायदा करे, तारीफ तो बहुत करते हैं। जो आदमी आपकी आज्ञा का पालन न करे आपके पत्र का उत्तर तक न दे, 'वह 'मेरा' नहीं हो सकता, केशवदेव शास्त्री को आपने क्या लिखा था? वह आजकल कहाँ हैं, कलकत्ता या कहीं और? . 'सरस्वती' में 'डाकेजनी' वाला नोट पढ़कर बड़ी हंसी आई। 'आंख मिचौनी' वाला चित्र बड़ा भव्य है, कविता भी अच्छी है, अबके एक साथ ही वेदों को और आर्यों को ले डाला। एक को तो बाकी रहने दिया होता। इन्हें पढ़कर कुछ आर्य सामाजिकों में बड़ी ले दे पड़ेगी। एक तमाशा नजर "आयगा "पार से छेड़ चली नाय असद, गर नहीं वास्ल तो हसरत ही सही" "न नटा न विटान गायना"...श्लोक में 'कुचभारोन्नमिता' की जगह "कुचभारानमिता' चाहिए था, भार से आनमन' होता है, 'उन्नमन' नहीं। कालिदास ने भी लिखा है"-आवजिता स्तोकमिव स्तनाभ्याम्"। अस्तु इस अनन्य कृपा के लिए धन्यवाद।