पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१६९

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पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम 'सरस्वती' में परोपकारी की आलोचना करके आपने हमारा काम बढ़ा दिया, नमूनों की धड़ाधड़ मांग आ रही है। हाँ, हाल के आर्यमित्र' में बि० एन० जी फिर बड़बड़ाए और गिड़गिड़ाए हैं, महाराज शाहपुराधीश से बड़े आर्त स्वर से अपील की है। शेष फिर। कृपापात्र पद्मसिंह (५६) ओम अजमेर १६-९-०८ श्रीमत्सु सादरं प्रणतयः १२-० का कृपापत्र मिला। श्री बा० मैथिलीशरण जी का कृपाकार्ड भी आज 'मिला। उन्होंने दो चार दिन में आपका फोटो भेजने का वादा किया है। हमने उनका भी एक फोटो मांगा है। शंकर जी का भी पत्र आया है, लिखते हैं"...उमिला पर कविता लिख रहा हूँ। अलीगढ़ में कोई अच्छा फोटोग्राफर नहीं है, तो भी आपकी और द्विवेदी जी की आज्ञा का पालन होगा। आगरे जाकर तसवीर खिचवाने का विचार है। नवम्बर के अंक में जा सकेगी। उर्मिला वाली कविता कार्तिक में निकल सकेगी, 'द्विवेदी जी के चित्रों पर भी लिलूँगा..." ___ रसिकमित्र में कविता भेजने पर भी मैंने उनसे जवाब तलब किया है। देखें क्या कहते हैं, निद्रा रोग की औषध तयार हो गई है, वैद्य जी के कम्पाउण्डर ला० हरिश्चन्द्र अपने किसी कार्यवश, कानपुर होकर कालपी जानेवाले हैं, अभी ८-१० दिन में उनका उधर आने का विचार है, इसलिये उनके द्वारा औषध भेजी जायगी। यदि उनके आने में विलम्ब हुआ तो पार्सल से भेज दूंगा। यदि यह दवा आपको अनुकूल पड़ी, कुछ फायदा हुआ, तो हम ही आपके अनुग्रहीत और कृतज्ञ होंगे। __ "कुचभारोन्नमिता" पर मैंने दोष दृष्टि यानुकताचीनी के ख्याल से नहीं लिखा 'था, किन्तु 'सरस्वती' में किसी पद पर पाठ भेद देखकर मुझे स्वयं सन्देह हो जाया करता है, कि कौन सा पाठ ठीक है, इसीलिए मैं आपको लिखने की धृष्टता कर 'बैठता हूँ। अन्यथा मैं और आपकी त्रुटियां निकालूं? शिव ! शिव!