पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१७१

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १५७ चुकी हैं। 'आर्यमित्र' आप पढ़ चुके। मैं भेजने ही को था। प्रचारक में भी एक नोट निकला है। आ० समाचार के आफिस से मंगाकर पढ़ लीजिए। अस्तु, इस विषय में फिर लिखूगा। अपना कुशल समाचार लिखिए, निद्रानाश से चिन्ता है। मि. गौरीशंकर वर्मा, बी० ए०, बार-एट-ला, अजमेर के नाम 'सरस्वती' जारी करा दीजिए। प्रेस को लिख दीजिए। वी० पी० भेज दें, शीघ्र। .. पद्मसिंह श० (५८) ओम् रिप्लाइड अजमेर ३०-९-०८ २८-९-०८ मान्यवर पण्डित जी महाराज प्रणाम कृपाकार्ड मिला, निद्रानाश के समाचार ने दुख दिया। अच्छा, जलचिकित्सा ही कीजिए, यह रोग बुरा पीछे पड़ा, न जाने कबतक दिक करेगा। प्रचारक में कोई सारगर्भित बात नहीं थी, सिर्फ 'सरस्वती' के लेखों का जिक्र करके आर्य प्रतिनिधि सभा से 'सरस्वती' के मुकाबिले का पत्र निकालने की अपील की थी। हां, हाल के आर्यमित्र में हजरत बि० एन०, खूब बके हैं, भेजता हूं देखिए। एक नोट में इसकी खबर ले दीजिए, दुष्ट की धूर्तता तो देखिए, संस्कृत में टांग अड़ाता है। .. समालोचना पढ़कर इसे शुद्ध नाम तो लिखना आ गया है, पहले बि० एन० लिखा करता था "अहमद की पगड़ी महमूद के सिर पर" वाली बात कैसी बेमौके लिखी है, सारा लेख ही प्रलाप मात्र है, इसे देखकर बुद्ध आर्य लोग वज्द में आ जायंगे। विचित्र लीला है। हमें तो ऐसी ऐसी बातें देखकर इस समाज से घृणा सी हो गई है। कृपापात्र पद्मसिंह