पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१८१

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १६७ मिश्र जी ने क्या उत्तर दिया? उनके पास जो मसविदा गया था उसका क्या रहा? शंकर जी की वह कविता जिसमें उन्होंने एकदम विजन बोल दिया है, उन्हें लौटा दिया या आप के पास है ? उनका चित्र 'सरस्वती' में यथासंभव शीघ्र ही निकालिए, कविता-कलाप कबतक निकलेगा? जिस दिन मैं अजमेर से चला था, उसी दिन ओझा जी दौरे से लौटे थे। फोटो के लिए मैं गया, वह मिले नहीं। मैं अपने २-३ मित्रों के सुपुर्द यह काम कर आया था कि फोटो लेकर आपके पास अवश्य भेज दें, जरूर भेजेंगे। मैंने उन्हें लिखा है। म. वि. ज्वालापुर से एक मासिक पत्र निकलेगा। वहां रहकर मैं उसका संपादन करूंगा। यही काम होगा। 'सम्पत्तिशास्त्र' मि० गौरीशंकर जी को भेज दिया, अच्छा हुआ। 'स्वाधीनता' जहां से मिलती हो वी० पी० से भिजवा दीजिए। आपके पास फालतू न सही। संपत्ति शा० वी० पी० से भेजा है या वैसे ही। चलते समय अजमेर में मित्रों के अनुरोध से मैने फोटो उतरवाया था। उसकी एक कापी आपके पास भेजने को कह आया था। पहुंची या नहीं। इस पत्र के पहुं- चते २ आप कानपुर लौट आवेंगे, इसलिए दौलतपुर न भेजकर यह पत्र कानपुर ही भेजता हूं। कृपापात्र शेष ज्वालापुर से । पद्मसिंह श० (७०) म०वि० ज्वालापुर ९-६-०९ श्रीयुत मान्यवर पं० जी प्रणाम श्रीमान् का कृपाकार्ड १-६ का अब मिला। मैं यहां कल शाम ही वापस आया हूं। २९-५ को दिल्ली गया, वहां ३-६-०९ तक रहा, फिर सहारनपुर गया। दिल्ली सदर का उत्सव बड़े अपूर्व समारोह से हुआ। २०-२५ उपदेष्टा लोग और विद्वान् इकट्ठे हुए थे, दो दिन तक, मौलवियों, पादरियों और पंडितों से आर्य- समाज का शास्त्रार्थ भी हुआ। अपार भीड़ रहती थी, स्वामी दर्शनानन्द जी (जिनके लिए गुरुकुलिय महात्मा ने पंजाब आर्य प्रतिनिधि सभा से आ० स० का प्लेटफार्म बंद करा दिया था) के खूब धूमधाम से व्याख्यान और शास्त्रार्थ हुए, महात्मा