पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१८२

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र ने हजार जोर मारा कि पं० गणपतिशर्मा और स्वा० दर्शनानन्द के व्याख्यान न हों पर एक न चली, महात्मा ने मुंह की खाई। दिल्ली में खूब प्रभाव रहा। वहां इकट्ठे हुए आर्य विद्वानों ने स्वतंत्रोच्छ्वास" लेने के लिए एक 'आर्य विद्वत्सभा' कायम की है, जिसका वृत्तान्त आप अगले भारतोदय में पढ़ेंगे। यह भी महात्मा को असह्य होगा। धर्मपाल ने एक साप्ताहिक समाचार पत्र 'पतन्दर' नामक निकाला है। उसमें महात्मा के चेले चांटों की खूब खबर ली जा रही है। महात्मा पर भी दबी चोटें की हैं। आजकल महात्मा का काफिया तंग है। गुरुकुल के ब्रह्मचारियों और अध्यापकों में बगावत फैल गई। अस्तु, यह लंबा किस्सा है। हां, दिल्ली में एक रोड पीचर आर्य सामाजिक से और कुछ ईसाई मुसलमानों से मारपीट हो गई थी, मुकदमा चल रहा है, मामूली बात है। सहारनपुर आ० स० का उत्सव भी खूब हुआ। स्वा० दर्शनानन्द जी और पं० गणपति शर्मा के वहां भी व्याख्यान हुए। महात्मा का अधिकार संकुचित होता जाता है। 'भारतोदय' बड़ी गड़बड़ की हालत में निकला। आपको पसंद आ गया, शुक्र है। आपके विषय में कोई बात बढ़ाकर नहीं लिखी गई। जिन सज्जनों के नाम आपने लिखे थे उनके पास १म, अंक भेज दिया गया। शंकर जी का 'मनोराज्य' जिस दशा में 'सरस्वती' में प्रकाशित हुआ है, वह उससे संतुष्ट नहीं हुए, अतः वह उसे पुनः अविकल रूप से 'भारतोदय' में प्रकाशित करने का अनुरोध करते हैं। वह 'मनोराज्य' की दस्तअन्दाजी से बहुत खिन्न जान पड़ते हैं। क्या आज्ञा है? म० रा० फिर 'भारतोदय' में छाप दें? यदि आप नाराज न हों, तो वह इससे राजी हो जायंगे। कवियों को नाराज नहीं करना चाहिए। हां, हमारी चिरकालीन इच्छा पूर्ण हो गई। अब के सहारनपुर के सरकारी बाग में कालिदास के प्रिय अशोक के दर्शन हो गये। वहाँ कई प्रकार का अशोक है। उनमें नव पल्लव, पुष्प और फली सब कुछ देखा, उसे देखकर जो आनन्द हुआ, लिख नहीं सकता। अर्जुन, पुन्नाग, कदम्ब इत्यादि भी वहाँ देखे। बड़ा अपूर्व और विस्तृत बाग है। द्रष्टव्य है कभी आप भी जरूर देखिए। खेद है कि आप फिर बीमार हो गए। इतने पर भी आप लिखते हैं कि "बिबारी विषय में इतना न लिखना था"..... कुशल समाचार लिखते रहिए।