१७७ पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम
उत्कृष्ट लेखक ही होता तो पूरा पूरा बिहारी का बदला विद्यावारिधि से लेता।
हाँ, कितने अफसोस की बात है कि बिहारी का ऐसा अक्षम्य अपराध करनेवाले उसके जानी दुश्मन के साथ आप नरमी का बरताव करना चाहते हैं, नहीं महाराज, क्षमा कीजिए, मैं इस बात में आपसे सहमत नहीं। मजमून की कांट छांट क्या वैसे तो आप मेरे शरीर की कांट छांट कर डालें तो भी मुझे उन न हो, पर विद्यावारिधि की खबर तो ले लेने ही दीजिए, इस शख्स ने बड़ा जुल्म किया है, घोर अपराध किया है, लिहाजा मुलाहजा ऐसे मौकों पर नहीं बरतना चाहिए। दूसरे-बुराभलातो हर हालत में सुनना पड़ेगा, चाहे आप पद पद पर माफी मांग, तारीफ कर कर
'समालोचना कीजए, आजकल समालोचना का अर्थ ही गाली खाना हो गया है, देखिए, बी० एन० शर्मा की उस 'शिक्षामंजरी' की आलोचना हमने कितने नम्र
शब्दों में की थी, पर वह हजरत कुछ ऐसे बिगड़े हैं कि खुदकुशी पर तयार हैं। किसी तरह मानते ही नहीं।
आप शायद समझते हैं कि आपने कड़ी कड़ी समालोचना लिखकर बहुत से लोगों को अपना दुश्मन बना लिया है, पर आपको उनकी खबर नहीं जो आपकी समालोचनाएँ पढ़ पढ़ कर ही आपके मित्र बने हैं, प्राचीन कवियों के गौरव काउन्हें पता लगा है, हिन्दी पढ़ने की ओर उनकी रुचि हुई है, यदि कहिए तो दस पांच ऐसे आदमियों के नाम लिख दूं? पता दूं ?
इस जरूरी और लम्बी बकवास के लिए आप से क्षमा मांगता हूं। आप जहां कहीं जायं सूचना अवश्य दीजिए। अपनी तबीयत का हाल लिखते रहिए। कृपाकर के पं० गौरीदत्त जी का पता लिखिए। यदि आप लिखेंगे तो समालोचना भेज दूंगा। शेष फिर।
कृपाकांक्षी पद्मसिंह शर्मा
हाली का एक गद्य लेख और जफर की एक पहेली अक्षरान्तर करके भेजता हूँ, यदि उचित हो तो 'सरस्वती' में दे दीजिए, अन्यथा वापस भेज दीजिए। पद्मसिंह