पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१९५

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १८१ काशीवास की इच्छा हो तो मैं भी क्या, हिंदी साहित्य सम्मेलन पर वैसा नोट लिखने वाले को ना०प्र० स० द्विवेदी जी की सिफारिश पर कोश का काम दे देगी? और यदि यह असम्भव बात हो भी जाय तो क्या पं० केदारनाथ पाठक तथा ला. भगवानदीन के साथ वैसा बर्ताव करनेवाली श्रीमती से हमारी पट जायगी ? यह सब बातें सोच लीजिए। फिर जैसी आज्ञा हो। भविद्दधेय:- पद्मसिंह शर्मा (८१) म० वि० ज्वालापुर १०-११-१० श्रीयुत परममाननीय द्विवेदी जी महाराज प्रणाम दोनों कृपापत्र यथासमय मिले और कार्ड भी। मैं आपकी इस कृपा का अत्यनुगृहीत हूँ। पर लक्षण कुछ ऐसे दीखते हैं कि मैं इस अवसर से लाभ न उठा सकूँगा। यहाँ के मु० न० पं० भीमसेन जी बंबई के गुरुकुल में ६०J पर जाते हैं, इस पर बड़ी हलचल मच रही है। मैंने जरा जाने का जिक्र किया था सो बड़े पंडित जी और पं० नरदेव जी आदि बिगड़ उठे। सब काम छोड़ने और वि. को तोड़ने पर तय्यार हैं। पं० भीमसेन जी वाला मामला जरा ठंडा हो जाय, तब इन लोगों को किसी प्रकार सांत्वना देकर पिण्ड छुड़ाने का प्रयत्न करूं। बड़ा बेढब फंसा हूँ। बनारस से अभी कोई पत्र नहीं आया। 'सरस्वती' के लिए एकाध लेख भेजकर आज्ञा पालन करूँगा। पूज्या माता जी के स्वास्थ्य का समाचार लिखिए। ___ मैं परसों तक घर जानेवाला हूँ। पत्र आया है। पिता जी बीमार हैं, शायद १०-१२ दिन नायकनगला रहना पड़े। 'दास पद्मसिंह