पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१९७

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पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १८३ अनुकूल था, परंतु क्या करूँ, नहीं जा सका, होली पर यहाँ का उत्सव है, इस साल सख्त मुकाबला है, इस वर्ष कांगड़ी वालों ने अपने यहाँ फीस माफ कर दी है, उसका कारण केवल महाविद्यालय, और 'भारतोदय' के लेख हैं। यह मन्तव्य उनके यहाँ रहेगा नहीं, यह निश्चित है, सिर्फ महाविद्यालय को विनष्ट करने के लिए ही यह मायाजाल फैलाया गया है, महाविद्यालय के उत्सव की सफलता पर ही म० वि० की स्थिरता निर्भर है, श्री पं० भीमसेन जी के चले जाने से म० वि० को कुछ हानि पहुंच चुकी है, अब ऐसी दशा में मेरे चले जाने से लोग कहते हैं कि सख्त नुकसान पहुंचेगा, उत्सव सफल न हो सकेगा महात्मा का मनोरथ सिद्ध होगा, हँसी उड़ाने का मौका मिलेगा- भयाद्रणादुपरतं मस्यन्ते त्वां महारथाः।" येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ।।" मुझे अपने लाघव या गौरव का तो इतना ध्यान नहीं है, पर मेरे कारण म० वि० को कुछ हानि न पहुंच जाय, इसका खयाल जरूर है, सच जानिए मैं बुरी तरह फंसा हूँ, पिछले दिनों परोपकारिणी के मंत्री श्री शाहपुराधीश ने वैदिक प्रेस की मैनेजरी के लिए डबल तार दिये, पत्र भिजवाए कि फौरन चले आवो, पर मैं नहीं जा सका, इन लोगों ने वावैला मचाकर नहीं जाने दिया, वह ६५) की जगह थी। जब कभी ऐसा प्रसंग आता है, कही जाने का इरादा होता है या कहीं से बुलावा आता है तो लोग कहने लगते हैं कि तुम रुपये के लालच से जाते हो, सो यहीं से उतने ले लो"-और यह मुझसे गवारा नहीं हो सकता। यहाँ की दशा ऐसी नहीं कि और जरूरी काम चलाकर म० वि० इतना वेतन दे सके। यह गले पड़ा ढोल जबरदस्ती बजवाया जा रहा है, सो जिस प्रकार भी हो, आगामी उत्सव तक तो इसमें और भी डंके लगाने ही पड़ेंगे, उसके पश्चात् यहां से छूटने का पक्का इरादा कर लिया है। वाजिब था सो अर्ज किया, उम्मीद है कि हुजूर फिरदी की दरख्वास्त की समाअत फर्मावेंगे। श्री शुक्ल जी से मुलाकात हुई ? वह अच्छे तो हैं ? कृपापात्र पद्मसिंह शर्मा परसों रात यह पत्र लिखा, टिकट नहीं था, कल आदित्यवार था, इसलिए न मिला, सो आज भेजता हूँ। पद्मसिंह शर्मा