पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१९८

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१८४ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र (८४) महाविद्यालय ज्वालापुर २८-१-११ श्रीयुत माननीय द्विवेदी जी महाराज प्रणाम श्रीमान् का कृपापत्र यथासमय मिला, दो तीन दिन से तबीअत खराब थी, इसलिए उत्तर में विलंब हुआ क्षमा कीजिए। इंडियन प्रेस को लिख दीजिए कि यदि उन्हें कोई काम का आदमी मिले तो मेरे लिए न रुकें, मैं अभी ठीक नहीं कह सकता कि उत्सव के पीछे भी वहाँ जा सकूँगा या नहीं। बनारस वाले भी अभी सर हैं, वह भी होली तक ठहरने को कहते हैं। उन्हें भी यही उत्तर दिया है। ___'कालिदास की निरंकुशता' पर कई महाशय बेतरह बिगड़े हैं, इस ऊपरी दवा से नाक भौंह चढ़ा रहे हैं। ऐसी आलोचनाएं सुनने के लिए अभी हिंदी जगत् तयार नहीं है, इस प्रकार की सामग्री अभी इसके लिए असात्म्य है। आश्चर्य नहीं कि इस बार भी अनस्थिरता वाला वितंडा खड़ा हो जाय। अस्तु। कई महशय बा० मैथिलीशरण जी की कविता पर ही खार खाये बैठे हैं! 'सरस्वती' और 'मर्यादा' के सापत्य भाव पर भी लोगों में चेमगोइयां शुरूं हो गई हैं, एकाध आदमी मिले, जो मर्यादा की आड़ लेकर सरस्वती को लक्ष्य बनाने की फिकर में हैं, 'सरस्वती' और 'अहले सरस्वती' ( ? ) के लिए यह साल जरा जद्दोजदह का रहेगा, इसलिए विशेष सावधानता की जरूरत है। __ हां, 'काव्यप्रभाकर' तीन चार दिन हुए हमारे पास भी आया है, उसमें दो स्थानों पर श्रीमान् का उल्लेख है, वहाँ तो आपकी प्रशंसा ही है, खड़ी बोली की कविता करनेवालों को आपके अनुकरण का उपदेश दिया है। जहाँ तक मैं समझा हूँ उसमें किसी प्रकार का व्यंग भी नहीं है। हाँ, मैथिलीशरण जी की कविता पर शायद वह भी रुष्ट मालूम होते हैं, क्योंकि उनकी कविता का कहीं उल्लेख तक नहीं किया। अस्तु, मेरी राय में यदि उक्त पुस्तक की वह समालोचना छपे तो मै० श० जी के नाम से कदापि न छपनी चाहिए, लेखक की जगह समालोचक या कोई और कृत्रिम नाम रहे। उनके नाम से छपने पर उनकी कविता के द्वेषियों को एक बहाना उन पर हमला करने के लिए हाथ आ जायगा।