पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२०

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द्विवेदी जी के पत्र 'जनसीदन' जी के नाम (४) ३ झांसी २३-३-०३ प्रिय महाशय २० तारीख का आपका कृपापत्र आया। राजा साहब' का पत्र पढ़कर हमारा चित्त क्षुब्ध हो उठा। इसमें कोई संदेह नहीं। परन्तु हमारा क्षोभ हृदय के भीतर ही रहा। उससे हमने किसी प्रकार का अनौचित्य नहीं होने दिया। उसका उत्तर जो हमने राजा साहब को भेजा उसके पांच-चार दिन पीछे हमने उनका जीवनचरित समाप्त किया। उसमें उस क्षोभ का लवलेश भी आपको न मिलेगा। हम राजा साहब की उदारता और उनके भाषा-प्रेम पर मोहित हैं। अतएव यदि वे हमको उससे भी सख्त पत्र लिखते तो भी हम सिवाय विनय के और कुछ न कहते। यदि और कोई होता तो हम उसके पत्र का जवाब भर्तृहरि के उस श्लोक से देते जिसका चतुर्थ चरण है- "मय्यप्यास्था न चेत्त्वयि मम सुतरामेष राजन् गतोऽस्मि" परन्तु ऐसा करना हमारे शील के खिलाफ है। धनवानों में कितने पुरुष साहित्य-प्रेमी हैं ? एक ही दो। उनको कटुवचन कहना हमारा धर्म नहीं है। . . फ्रांस में दो कवि हो गए हैं। वे ११ वर्ष तक एक दूसरे से नहीं मिले। परंतु पत्र द्वारा ही उनका प्रगाढ़ स्नेह हो गया। यहां तक कि दोनों ने मिलकर पुस्तकें तक लिखीं। हमने समझा कि हमारा और राजा साहब का इतना पत्र-व्यवहार हो चुका है कि हम उनको उस कविता के विषय में लिख सकते हैं। हमको यह भासित हुआ कि वे उस कविता से प्रसन्न होंगे। यदि वे, जैसा आप अब लिखते है, सचमुच उसके देखने के लिए उत्कंठित हैं तो हम नहीं समझते, क्यों उन्होंने हमको उस प्रकार की कड़ी चिट्ठी लिखी। वह कविता अश्लील है, अतएव हम उसे राजा साहब के पास भेजने का साहस तबतक नहीं कर सकते जबतक वे स्वयं हमको उसके लिए यथोचित रीति पर न लिखें। उसकी नकल करने में हमें दो- तीन दिन लगेंगे। उसमें कोई २०० पंक्तियां हैं। नायिका-भेद और इस प्रकार की कविता सब कोई अपने घर में पढ़ सकता है। परन्तु, नायिका-भेद का सर्वसाधारण में प्रचार अच्छा नहीं। हम इसके प्रति- कूल हैं। इस पर एक चित्र भी 'सरस्वती' में निकलेगा। इस प्रकार की पुस्तकों १. राजा कमलानन्द सिंह।