पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२०२

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१८८ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र क्या कहूँ 'सरस्वती' के लिए कुछ लिखने को तो जी चाहता है, पर अब हाथ काम अच्छी तरह नहीं देता, 'कलामेअकबर' का द्वितीय भाग मंगाया है, वह आ जाय तो दोनों भागों से कविता के कुछ नमूने और चरित लिखकर, वह पूर्व प्रति- ज्ञात लेख भेजने की चेष्टा करूँगा, “सिद्धिस्तु दैवेस्थिता"-पिछले वर्ष सम्मेलन के लेखों से 'मर्यादा' कई महीने गुजारा करती रही, अबके आपने समय से भी एक हफ्ता पूर्व 'सरस्वती' निकाल कर उस बेचारी के लिए कुछ न छोड़ा। मूंड पकड़ कर रोवेगी। सत्यदेव जी के स्थान की पूर्ति मिश्र जी से कराइए, बहुत अच्छा लिखते हैं। गुलिस्तां के अनुवाद पर आपने अच्छी समालोचना नहीं की, अनुवाद, अच्छा नहीं हुआ, मैंने भी वह देखा है, अक्षरानुवाद की धुन में कारनहसी महावरों तक का अनुवाद कर डाला है। दास पद्मसिंह शर्मा (८८) ओम् महाविद्यालय ज्वालापुर १२-१-१२ श्रीमत्सुनतमः मि० धर्मपाल का 'इंद्र' साप्ताहिक रूप में निकला है, उसका १म, अंक आज की डाक से भेजता हूँ। पढ़िए, महात्मा और गु० कु. संबंधी कई रहस्य मालूम हो जायंगे, इसमें आपको कुछ मजा आवे तो आगे को और भी भेजता रहूँ? इसे पढ़ जरूर लीजिए। प्रचारक' की कटिंग भी भेजता है, उसमें 'निरंकुशता निदर्शन' की समालोचना पढ़िए। भवदीय पद्मसिंह शर्मा