पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२१

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र के कर्ताओं को पुरस्कार देने में भी हानि नहीं। परन्तु सर्वसाधारण को इसका ज्ञान होना चाहिए कि अमुक अमुक को अमुक अमुक पुस्तक के लिए यह मिला। पर हमारा मत है-मन्दमति तो हम हई हैं, परन्तु इसमें हमारा क्या जोर। अपनी अपनी समझ तो है। उस कविता' को राजा साहब के पास भेजने में हमने कोई हानि नहीं समझी। यदि राजा साहब या आपने वात्स्यायन, जयदेव, डल्लन, बाइरन आदि के ग्रंथ देखे हैं तो विशेष कहने की आवश्यकता नहीं। इनसे बड़ा ऋषि, भक्त और कवि कोई इस समय नहीं है। ___ रवीन्द्र बाबू की ग्रंथावली हमको कल तक मिल जाएगी। उसके लिए श्रीमान् राजा साहब से हमारा हार्दिक धन्यवाद कहिएगा। राजा साहब का प्रसाद समझ कर हम इन पुस्तकों को अत्यन्त प्रेम से पढ़ेंगे और सदैव पास रखेंगे। 'प्रसाद चिन्हानिपुरः फलानि"। हमारी तो आपसे यही प्रार्थना थी कि आप भारतमित्र को कुछ न लिखिए। अपना लेख पढ़कर वह यह समझेगा कि हमी ने लिखा है और हमें फिर गालियां मिलेंगी। परन्तु यदि आपकी ऐसी ही इच्छा है तो छपने दीजिए। कोई १ महीना हुआ होगा हमने आपको एक कार्ड लिखकर पूछा था कि 'साम्ब कमलानन्दम्" में पं० अम्बिकादत्त व्यास का कहीं कोई जिकर क्यों नहीं है। क्या वह कार्ड आपको नहीं मिला? इसका उत्तर अब कृपा करके भेजिए। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी १. द्विवेदी जी ने 'सुहागरात' शीर्षक की अपनी बनाई एक कविता राजा साहब को गुप्त रीति से भेजी थी जिसे पढ़कर उनके मन में कुछ क्षोभ हुआ। . २. इस नाम का एक काव्य संस्कृत में सोती-सलेमपुर (दरभंगा) वासी पं० श्रीकांत मिश्र ने राजा साहब के संबंध में लिखा था, जो छपा हुआ है, जिसके लिए राजा साहब ने चार हजार पुरस्कार दिया था। -संपादक