पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२१०

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श्री पं० श्रीधर पाठक जी के पत्र द्विवेदी जी तथा शर्मा जी के नाम ( १ ) श्री प्रयाग १६-४-०५ श्रद्धेय मित्र ___ क्या पूर्व पो० का० ने आपको अप्रसन्न कर दिया? मैं उस विषय में आपको बहुत दिनों से लिखने वाला था, पर आलस्य रोकता रहा, हिन्दी में पो० का० इसलिये भेजा कि हिन्दी वालों से हिन्दी के वि० में हिन्दी ही में लिखने का संकल्प है-आप औदस्य भाव छोड़ जरा इधर मुंह मोडिये-तबीयत तो अच्छी है? कृपैषी श्रीधर पाठक (२) श्री प्रयाग २०-४-०५ प्रिय सखे दौलतपुर से भेजा हुआ १४ ता० का पो० का० प्राप्त हुआ। सर्वनाम आदि के व्यवहार की नई रीति जी में बहुत दिनों से खटक रही थी। थोड़े से उदाहरण यहां देता हूँ- १. उसने कहा "हरे कृष्ण!" और (वह) चल दिया-यहां "वह" का प्रयोग प्रचार विरुद्ध है यद्यपि व्याकरण से शुद्ध है।