पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०० द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र होगा कि जैसे ही हमने ऐसा किया वैसे ही हमारे हृदय अपांपति में हिंदी साहित्य संसार के बाबत एक नहीं अनेक विलक्षण आनन्द-प्रद तरंग-ततियां उठीं और हमने खयाल किया कि अवश्यमेव आपने अपने उक्त पत्र में केवल मैत्री धर्म के लिहाज से ही हमको ऐसा कृपापूर्ण उत्तर दिया है। अर्थात् आपने उस्में आज्ञा की है कि “यदि आप वर्तमान हिन्दी प्रणाली के-फिर चाहे वह प्रणाली हमारी ही क्यों न हो-दोष दिखावेंगे तो हम जरूर आपके लेख का सादर और सधन्यवाद विचार करेंगे।" मैं आपकी उपर्युद्धत की गयी आज्ञा के मुताबिक बीमारी से रिहाई पाने पर उक्त विषय पर लेख भेज दूंगा- प्रियवर, यह एक टूटा फूटा उदाहरण आधुनिक हिन्दी प्रणाली का आपके "विचार" के अर्थ भेजता हूँ। यह आजकल के कई एक प्रसिद्ध लेखकों का प्रतिनिधि स्वरूप है; यथा, पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी, पं० श्या० वि० मिश्र, शु० दे वि० मिश्र, पं० गंगाप्रसाद अग्नि हो०, पार्वतीनंदन, बंग महिला, आदि आदि- And I do not think, I have overdone the picture; on the contrary I feel certain I have somewhat fallen short of the standard. Kindly let me have your views freely on the point.- I am doing with Orchitis Your sincerely S. Dhara pathak (स्थान का नाम नहीं है) ६-५-०६ मित्रवर्य १. कृ. का० का धन्यवाद। २. कविता तो आपको पसंद आई, पर, शायद वार्तिक को आप निर्दोष न समझते होंगे? क्योंकि उस्में 'सर्वनाम' बड़ी स्वतंत्रता पूर्वक छोड़ दिया गया है (छोड़ना का अर्थ यहाँ डालना नहीं है). कृपाकर लिखियेगा- ३. "आराध्य शोकांजलि" की प्रति आपको उपहरण करने में मैं एक गलती कर गया हूँ-मैंने "द्विवेदिषु" लिखा है या "द्विवेदिसु" ? मुझे स्मरण नहीं है। ४. आप यहां कब पधारेंगे? एक दिन पहले मुझको लिख दें तो अच्छा हो-