पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२१९

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बालमुकुन्द गुप्त जी के पत्र पं० श्रीधर पाठक जी के नाम २०५ गुरियानी (भवानी) २१-११-८८ श्रीयुत पंडित जी महाराज प्रणाम क्षमा कीजिये कि मैं चिरकाल आपकी सेवा में कोई पत्री भेज न सका। मैं २५ ओक्टूबर से बीमार होकर ऊपर लिखे पते से अपने जन्म स्थान में आया हूँ और पहली दिसम्बर तक लाहोर चला जाऊंगा। एक निवेदन आपकी सेवा में यह है कि नवम्बर मास से कोहेनूर दैनिक हो गया। और बड़ा मतलब इससे जातीय महासभा का काम है। चूंकि इस बार कांग्रेस का अधिवेशन प्रयाग में होगा, इससे प्रयाग के.....'समाचारों के भेजने के लिये कोहेनर को प्रयाग में कारस्पान्डेंट की आवश्यकता है। आप कृपा करके अपने किसी योग्य मित्र को इस काम के लिये तलाश करें और वह क्या इस काम के लिये लेंगे, लिखें, जवाब ऊपर लिखे पते से हो। आपका वही सेवक बालमुकुन्द गुप्त संपादक-कोहेनूर भारतमित्र प्रेस कलकत्ता, १०-९-८९ पूज्यवर प्रणाम आपके चार पत्र लगातार आये। इस कृपा का कहां तक धन्यवाद करूँ। “एडविन अज्जलना की प्रस्तावना बहुत ही सुन्दर हुई है। पंडित दुर्गाप्रसाद मिश्र जी ने बहुत ही पसन्द किया। ___ इस सप्ताह मैंने उसे छाप दिया है। बहुत ही अल्प था, दो कालम में बुरा लगता, इसीसे एक कालम में छापा। आगे अधिक आने से दो ही कालम में छपेगा। कृपा करके इसे अवश्य शेष कर दें। चाहे देर चाहे सबेर। आशा है कि मेरी यह प्रार्थना खाली न जावेगी। ट्रवेलर अनुवाद लिखने लगे हैं, अच्छी बात है। १कार्ड फट जाने से नही पढ़ा गया ।