पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२२

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द्विवेदी जी के पत्र 'जनसीदन' जी के नाम (५) झांसी प्रिय महोदय आपका १३ ता० का कृपापत्र आया। हमने आपको कल पोस्टकार्ड भेजा है। श्रीमान् के पत्र का उत्तर भी दिया है। उससे आपको सरस्वती के समाचार विदित हुए होंगे। हम आपको और श्रीमान राजा साहब को धन्यवाद दे चुके हैं और फिर देते हैं। 'सरस्वती' का जारी रहना कम से कम अगले वर्ष तक निश्चय रहा। श्रीमान राजा साहब को हमलोग अभी और कोई कष्ट नहीं देना चाहते। हां, यदि उनके कोई परिचित सुहृद् इत्यादिकों में से कोई ऐसे हों जो हिंदी से प्रेम रखते हों तो उनके लिए 'सरस्वती' की कापियां मंगा करके उसे सहायता दे सकते हैं। आपकी कविता में वे शब्द जिनके बारे में आपने लिखा है हम बदल देंगे। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी झांसी ८ सितम्बर,०३ प्रिय महाशय ____आपका कृपाप्लावित पत्र आया। परमानन्द हुआ। हमारी प्रशंसा में आपने जो इतनी बड़ी भूमिका बांधी है, उसकी क्या अवश्यकता थी। पत्र द्वारा हमारा आपका विशेष परिचय हो गया है। अतएव प्रशंसात्मक लौकिकाचार अच्छा नहीं लगता। 'सरस्वती' के जिन शब्दों या वाक्यों पर आपने शंका की थी उनका स्मरण तक हमको नहीं। उस बात ही का विस्मरण हुए बहुत दिन हुए। यह एक अत्यन्त क्षुद्र बात थी। भला इस पर हम क्यों अप्रसन्न होने लगे। हम जानते हैं कि मनुष्य मात्र भूल करते हैं तो क्या हम उनसे बाहर हैं? हम इन बातों का बुरा नहीं मानते।